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________________ पापभीरु गुण पर इत्यादिक उसके बोलने पर ज्योंही विमल उसे कुछ उत्तर देने लगा कि इतने ही में सहदेव ने उसके वस्त्र में से मणि छोड़ ली व पड़ह को स्पर्श किया । पड़ह छूने से वह कुमार के पास ले जाया गया, वहां उसने मणि को घिसकर कुमार पर छिटकी । इतने ही में क्षणभर में जैसे नींद में सोया हुआ मनुष्य उठता है वैसे ही कुमार उठ कर राजा से पूछने लगा । हे पिताजी ! यह मनुष्य, मेरी माता, अन्तःपुर तथा ये नगरवासी जन यहां किस लिये एकत्रित हुए हैं ? तब राजा ने सब वृत्तान्त कहा। ___ पश्चात् राजा ने हर्षित हो अपने राज्य का अर्द्ध-भाग लेने के लिये सहदेव को विनती करी । तब वह बोला कि-हे राजन् ! जिसके प्रभाव से यह कुमार जीवित हुआ है । वह निर्मल आशयवान् मेरा ज्येष्ठ भ्राता तो सपरिवार बाजार में खड़ा है। इसलिये उसको यहां बुलवाकर यह राज्य दो। तब राजा सहदेव के साथ एक उत्तम हाथी पर चढ़कर वहां गया। वहां विमल को देख कर बड़े हर्ष से उससे भेट कर वह इस प्रकार बोला। हे विमल ! मुझ व्याकुल हुए को तूने पुत्र भिक्षा दी है, इसलिये कृपा कर शोघ्र मेरे घर चल कर मुझे प्रसन्नकर । जैसे राजा उससे प्रीतिपूर्ण वचन कहने लगा वैसे २ विमल के हृदय में महान् अधिकरण प्रवृत्ति होने का दोष खटकने लगा। जिससे उसने प्रत्युत्तर दिया कि-हे नरेन्द्र ! हे अन्याय रूप विष के फैलाव को रोकने वाले उत्तम राजेन्द्र ! यह तो सर्व सहदेव का कार्य है, अतएव उसका जो कुछ भी करना योग्य हो सो करो।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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