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________________ अकरता गुण पर को आनन्द देने को चन्द्र समान कीर्तिचन्द्र नामक राजा था। उसका छोटा भाई समरविजय नामक युवराज था। अब राग के बल को नष्ट करने वाले, रजस्-पाप को शमन करने वाले, मलिन-मले अम्बर-वस्त्र धारण करने वाले, सदयदयावान्, अंगीकृत भद्रपद-भद्रता धारी सुमुनि-सुसाधु के समान हतराज प्रसर-राजयात्रा रोकने वाला, शमित रजस्-धूल को दबाने वाला, मलिनांबर-बादलयुक्त आकाश वाला, सदक-पानी सहित, अंगीकृत भद्रपद-भाद्रपद मास वाला वर्षा काल आया। उस समय प्रासाद पर स्थित राजा ने भरपूर पानी के कारण जोश से बहती हुई नदी देखी । तब कुतूहल-वश मन आकर्षित होने से अपने छोटे भाई के साथ राजा उक्त नदी में फिरने के लिये एक नाव में चढ़ा और दूसरे लोग दूसरी नावों में चढ़े। वे ज्योंही नदी में क्रीड़ा करने लगे त्योंही उक्त नदी के ऊपर के भाग में बरसे हुए बरसात से एकदम तीव्रवेग का प्रवाह आ गया। जिससे खींचते हुए भी नावे भिन्नर दिशाओं में बिखर गई, क्योंकि प्रवाह के वेग में नाविकों का कुछ भी वश नहीं चल सकता था। तब नदी के अन्दर के तथा किनारे पर खड़े हुए पुरजनों के पुकार करते प्रचंड वायु के झपाटे से राजा वाली नाव दृष्टि से बाहर निकल गई । वह दीर्वतमाल नाम के वन में किसी वृक्ष से लग का ठहरी । तब कुछ परिवार व छोटे भाई के साथ राजा उसमें से नीचे उतरा । वहां थक जाने से ज्योंही राजा किनारे पर विश्राम लेने लगा त्योंही नदी के प्रवाह से खुदी हुई दरार के गडे में प्रकटतः पड़ा हुआ उत्तम मणि-रत्नों का निधान उसने देखा । ___ राजा ने उसे ठीक तरह से देखकर अपने भाई समरविजय को बताया। वह देदीप्यमान रत्न-राशि देखकर समरविजय का
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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