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________________ अकरता गुण पर तथा पुष्प की वृष्टि हुई और उसके गृहांगन में महान वसुधारा (धन वृष्टि) हुई। तथा उक्त वैतालिक की स्तुति करने के लिए नरेन्द्र, देवेन्द्र तथा असुरेंद्र आये व उसे शुभ परिणाम से सम्यक्त्व प्राप्ति हुई। पश्चात् वह अपने धन को सुपात्र में खर्च कर मन में जिनेश्वर का स्मरण करता हुआ इस अशुचि मय शरीर को त्याग कर प्रथम देवलोक में गया। वहां से च्युत होकर यह लोकप्रिय विनयधर हुआ है और दान के पुण्य के प्रभाव से उसे ये चार त्रियाँ मिली हैं। उन त्रियों के पवित्र शील से रंजित होकर शासन देवता ने उस समय तुमे वैराग्य उत्पन्न करने के लिये उनको विरूप कर दी थीं। ___ यह सुन धर्मबुद्धि राजा उत्कृष्ट चारित्र धर्म पालन करने की बुद्धि वाला होकर राज्य की व्यवस्था कर स्वस्थ मन से दीक्षा लेने लगा। विनयधर ने भी बहुत लोगों को धर्म में बहुमान उपजाते हुए चारों स्त्रियों के साथ बड़ी धूमधाम से दीक्षा ग्रहण की। नगर जन भी अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार धर्म स्वीकार करके स्वस्थान को गये और आचार्य भी सपरिवार सुख समाधि से अन्य स्थल में विचरने लगे। पश्चात् धर्मबुद्धि और विनयंधर मुनि अकलंक चारित्र पालन कर सकल कमों का क्षय कर मुक्तिसुख को प्राप्त हुए । इस प्रकार बहुत से जीवों को बोधिबीज उपजाने वाले विनयधर का यह चरित्र सुनकर हे विवेकशाली भव्य जनों! तुम लोकप्रियता रूप-गुण को धारण करो। ... * इस प्रकार विनयधर की कथा समाप्त हुई *
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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