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________________ विजयकुमार की कथा इरादे उसने ऐसा किया । इसलिये हे जीव ! उस पर रोष मत कर क्योंकि उससे अपने शरीर ही का शोष होता है । सब कोई अपने पूर्वकृत कर्मों का फल विपाक पाते हैं। अतएव अपराध अथवा उपकार करने में सामने वाला व्यक्ति तो निमित्त रूप-मात्र है। जो तू दोषी पर क्षमा करे तभी तुझे क्षमा करने का अवकाश प्राप्त हो परन्तु जो वहां तू क्षमा नहीं करे तो फिर तुझे सदैव अक्षमा ही का व्यापार रहेगा-अर्थात् क्षमा करने का अवकाश ही नहीं मिलेगा। (इस गाथा का दूसरी प्रकार से भी अर्थ हो सकता है, वह इस प्रकार है कि ) जो तू दोष वाले पर क्षमा करे, तो तेरे पर भी क्षना करने का प्रसंग आवेगा (याने कि, तू क्षमा करेगा तो दूसरे भी तेरे पर क्षमा करेंगे) परन्तु जो तू क्षमा न करे, तो फिर तेरे पर भी सदैव अक्षमा ही का व्यवहार होगा. (अर्थात् तुझ पर भी कोई क्षमा नहीं करेगा.) ____ यह सोच कर वह अपने घर चला आया व माता के पूछने पर कहने लगा कि- हे माता ! अपशकुन होने के कारण से मैं उसे नहीं लाया । पश्चात् माता पिता उसे कई बार स्त्री को लिवा लाने के लिये कहते थे तो भी वह तैयार न होता था और विचार करता कि- उस बेचारी को कौन दुःखी करे ? तथापि एक वक्त मित्रों के बहुत प्रेरणा करने से वह श्वसुर गृह गया, वहां कुछ दिन रह कर स्त्री को ले अपने घर आया । तदनन्तर माता पिता के चले जाने ( मृत्यु हो जाने) के बाद वे घर के स्वामी हुए और परस्पर प्रेम से रहने लगे. उनके क्रमशः चार पुत्र हुए। मूल प्रकृति से सौम्य-स्वभाव होने से ही प्रायः विजय बहुत पाप तोड़ सकता था और इसीसे परिजन, मित्र तथा स्वजन आदि
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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