SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 293
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २८२ लब्धलक्ष्य गुण पर साथ संसार रूप स्मशान को पार करने में समर्थ दीक्षा ग्रहण कर ली। वह राजर्षि एकादश अंग सीखकर, चिरकाल निर्मल चारित्र पालन कर सिद्धिपद को प्राप्त हुआ। भीम राजा भी चिरकाल तक सैकड़ों प्रकार से जिन शासन की उन्नति करता हुआ परहित करने में तत्पर रहकर नीति से राज्य का पालन करने लगा। उसने अन्त में संसार रूप कारागृह से उद्विग्न हो, पुत्र को राज्य पर स्थापित कर दीक्षा लेकर मुक्ति प्राप्त की। इस प्रकार भीमकुमार का चमत्कारिक वृत्तांत सुनकर हे पंडितों ! तुम हर्ष से परहितार्थ करते हुए जैन मत से भावित रहो। (इस प्रकार भीमकुमार की कथा पूर्ण हुई) परहितार्थकारी नामक बीसवां गुण कहा, अब इकवीसवें लब्धलक्ष्य गुण का फल से वणेन करते है। लक्खेह लद्धलक्खो-सुहेण सयलंपि धम्मकरणिज्ज । दक्खो सुसासणिज्जो तुरियं च सुसिक्खिो होइ ।।२८।। मूल का अर्थ-लब्धलक्ष्य पुरुष सुख से समस्त धर्म कर्तव्य जान सकता है वह चतुर होने से शीघ्र सुशिक्षित हो जाता है। लक्ष रखे याने जाने-ज्ञानावरणी कर्म हलुआ होने से प्राप्त हुए के समान प्राप्त हुआ है लक्ष्य याने सीखने के योग्य अनुष्ठान जिसको वह लब्धलक्ष्य पुरुष सुख से याने बिना क्लेश से अर्थात् बिना कटाले-सकल याने समस्त धर्मकृत्य चैत्यवन्दन गुरुवन्दन आदि-पूर्व भव में सीखा हुआ हो उस प्रकार सब शीघ्र जान सकता है।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy