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________________ २०० परहितार्थकारिता गुण पर तब राजा ने उसको अपने मुकुट के अतिरिक्त शेष अलंकार देकर, अपने छड़ीदार को कहा कि-तू सामन्त आदि लोगों को कह कि आगामी प्रातःकाल को कुमार के सन्मुख जाना संभव है। अतः बाजार सजवा रखो । तदनुसार उसने वैसी ही व्यवस्था कराई । प्रातःकाल हर्षित हो राजा सपरिवार कुमार के सन्मुख गया। तब आकाश में चन्द्र हो उस भांति कुमार को आकाश मार्ग से आता देखा । पश्चात् भीमकुमार ने विमान से उतर कर राजा को प्रणाम किया तथा माता आदिका व अन्यजनों का भी यथा योग्य ( अभिवादन ) किया। तदनन्तर पिता की आज्ञानुसार वह हाथी पर बैठा। उसी भांति बुद्धिल मन्त्री के कुमार ने भी अपने माता पिता आदि सर्व जनों को यथा योग्य किया । भीमकुमार ने प्रसन्न होकर उसने अपने पीछे बिठाया । पश्चात् पिता के साथ वह धवलगृह में पहुंचा। भोजन करने के अनन्तर राजा ने मन्त्री कुमार को भीम का सर्व चरित्र पूछा तदनुसार उसने जो जैसा हुआ था वैसा हो कह सुनाया। इतने में हरिवाहन राजा को उद्यान पालकों ने हाथ जोड़ कर कहा कि - अरविन्द मुनीश्वर पधारे हैं। तब राजा सपरिवार वहां आ गुरु को हर्ष-पूर्वक नमन करके उचित स्थान पर बैठ गया। तब आचार्य धर्म कहने लगे हे भव्यो ! यह संसार स्मशान की भांति सदेव अशुचिमय है उसमें मोह रूपी पिशाच निवास करता है, और कषाय रूप गिद्धों के समूह फिरते हैं। उसमें दुर्जय धन-तृष्णारूप शाकिनी सदैव घूमती रहती है और अति उग्र राग रूप अग्नि में अनेकों जनों के शरीर जलते हैं। दुर्द्धर काम विकार की ज्वालाओं से वह चारों ओर से भयंकर लगता है और प्रतिसमय प्रसरते हुए धनप्रद्वेष रूप धूम्र से दुष्प्रेक्ष्य हुआ है ।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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