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________________ धर्मरश्न के योग्य प्रकृति सोम याने कि स्वभाव ही से पापकर्म से दूर रहने वाला होने से जो शांत स्वभाव वाला होय. ३ लोकप्रिय याने कि हमेशा सदाचार में प्रवृति वाला होने से जो सब लोगों को प्रिय लगे. ४ ม अक्रूर याने कि चित्र में गुस्सा न रखने से जो शान्त मन वाला हो. ५ भीरू याने कि इस भव और परभव के अपाय से जो 'डरने वाला हो. ६ अशठ याने कि जो दूसरों को ठगने वाला न होने से निष्कपटी हो. ७ दाक्षिण्य याने कि किसी की भी प्रार्थना का भंग करते डरने वाला होने से जो दाक्षिण्य गुण वाला हो. प लज्जालु याने अकार्य का आचरण करते शरमा कर उसको जो वर्जित करने वाला हो. ९ दयालु याने प्राणियों पर अनुकंपा रखने वाला हो. १० मध्यस्थ याने राग द्वेष रहित हो - इसी से वह सोमदृष्टि याने ठीक तरह से धर्म विचार को समझने वाला होने से [ शांत दृष्टि से ] दोष को दूर करने वाला होता है, मूल में 'सोमदिट्ठि' इस स्थान पर प्राकृतपन से विभक्ति का लोप किया है. इस जगह मध्यस्थ और सोमदृष्टि इन दो पदों से एक ही गुण लेने का है. ११ गुणरागी याने गुणों का पक्षपाती अर्थात् गुणों की ओर मुकने वाला हो. १२ सुकथा याने धर्मकथा वह जिसको अभीष्ट हो वह सत्कथ अर्थात् धर्म कथा कहने वाला हो. १३
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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