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________________ २६४ परहितार्थकारिता गुण पर ही इसका मस्तक काटना चाहिये। ऐसा मन में निश्चय करके उसने विशाल पर्वत का भी उल्लंघन कर जावे इतना बड़ा अपना रूप बनाया। उसने कुए के समान गहरे कान बनाये और हाथ में तमाल के पत्र समान कृष्ण कर्तिकादि और दिग्गज के समान अत्यंत उग्र धड़हटाड़ करने लगा। उसका ऐसा प्रपंच देखकर, हाथी को देखकर जैसे सिंह उछल पड़ता है, वैसे ही निडर होकर राजकुमार तलवार को सुधारने लगा। इतने में वह पापी कापालिक बोला कि हे बालक ! तेरे मस्तक-कमल द्वारा आज मेरी कुलदेवी की पूजा करके मैं कृतार्थ होऊंगा। - तब राजकुमार बोला कि-अरे पापिष्ट ! चांडाल और दुम्ब समान चेष्टा करने वाले ! अकल्याणी, अज्ञानी, नीच, पाखंडी! तू ने आज पर्यन्त जिन-जिन विश्वासियों को मारकर उनके कपाल की माल बनाई है। उनका वैर भी आज मैं तेरा कपाल लेकर निकालूगा । तब उस कापालिक ने क्रोध करके कर्तिका का प्रहार किया । उसको भीमकुमार तलवार द्वारा चुकाकर उस कापालिक के कंधे पर चढ़ बैठा। पश्चात् कुमार विचार करने लगा कि क्या कमल के समान इसका मस्तक तलवार द्वारा काट लू? अथवा यह मुझे मस्तक पर लेकर अब मेरा सेवक हो गया है अतः इसे कपट से कैसे मारू? अगर यह किसी प्रकार बहुशक्ति युक्त होकर जैन धर्म प्राप्त करे तो बहुत प्रभावना करेगा यह विचार कर वह उसके मस्तक पर मुष्टिका प्रहार करने लगा। इतने में योगी उसे अपनी भुजाओं से पकड़ने लगा, त्योंही कुमार तलवार सहित उसके गहरे कान में गिर पड़ा। वहां उसे कुमार तीक्ष्ण नखों द्वारा, पोत्र (फावड़ा) जैसे जमीन को
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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