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________________ भीमकुमार की कथा २६१ समुद्र में नाव को फोड़ता है और वह भस्म के हेतु उत्तम चन्दन को जलाता है । इसीलिये पण्डितों ने उक्त मनुष्य जन्म को सत्पुरुषों की संगति से, जिनेश्वर की प्रणति से, गुरु की सेवा से, सदैव दया धारण करके, तप से और दान से सफल करना चाहिये। कहा है कि-सत्पुरुष की संगति सदैव जीवों के गुण की बृद्धि करती है, दूषण को हरती है, सन्मत का प्रबोध करती है और पाप पंक को शुद्ध करती है। जिनेश्वर को नमन करने की बुद्धि रखने वाले पुरुष के मनोरथ शोघ्र ही सिद्ध होते हैं, विरुद्ध इच्छाएं पराभव नहीं करती और संसार के भय की पीड़ा नहीं होती। गुरु सेवा में परायण पुरुष रोगों से पीड़ित नहीं होता और ज्ञान दर्शन चारित्र रूप सद्गुणों से विभूषित होता है । सदैव दया से अलंकृत पुरुष भारी स्फूर्ति वाला, निरुपम आकार वाला, शरद पूर्णिमा के चन्द्र समान कीर्तिवाला और मुक्ति सुख को पाने वाला होता है। ... जो पुरुष अपनी शक्ति के अनुसार सदैव उत्तम तप तपा करता है । उसके सन्मुख अग्नि जल के समान, सागर भूमि के समान और सिंह हरिण के समान हो जाता है । जो पुरुष अपने न्याय प्राप्त धन को पात्र में खर्च करता है । उसको भव की पीड़ा नहीं होती, सुगति समीप हो जाती है और कुगति दूर रहती है। - इस प्रकार गुरु के वचन सुन राजा ने प्रसन्न होकर कुमार आदि के साथ सम्यक्त्व सहित गृहस्थ धर्म स्वीकार किया ।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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