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________________ विमलकुमार की कथा २५३ गंध संयोग मंगा रखवाया था। उस गंधपुटिका को द्वार पर रख कर लीलावती घर में गई हुई थी। इतने में उसने आकर उक्त गंधपुटिका देखी। ____ तब भुजंगता (शौकिनपन ) के दोष से वह तुरन्त ही उसे छोड़कर उसमें के गंध द्रव्य को सूघता हुआ मृत्यु शरण हो गया । मंद को घ्राण के दोष से मरा हुआ देखकर शुद्ध बुद्धिवान् बुध वैराग्य पाकर धर्मघोष सूरि से दीक्षित हुआ । उसने क्रमशः समस्त अंग-उपांग व पूर्व में विशारद होकर तथा अनेक लब्धियां संपादन कर सूरि पद प्राप्त किया। ___ वह विवरता हुआ यहां आया हुआ मैं स्वयं ही हूँ। अतः हे नरेश्वर ! मेरे व्रत लेने का कारण यह मंद की चेष्टा है । यह सुन धवल राजा विस्मय से आंखें विकसित करने लगा और विमल आदि सर्व जन अंजलि बांधकर निम्नानुसार बोलने लगेः__अहा ! इन पूज्य आचार्य महाराज का कैसा सुदर स्वरूप है । वाणी कैसी सुन्दर है । कैसो परोपकारिता है । कैसी प्रतिबोध देने की कला है। तथा कैसी सदा अपने आप ही को समझाने में तत्परता है । अथवा ( यह कहना चाहिये कि ) इन पूज्य महात्मा का सकल चरित्र ही कैसा भव्य है। अब राजा विशेष संवेग पाकर कुमार को कहने लगा कि-हे वत्स! तू' राज्य सम्हाल । मैं तो दीक्षा लूगा । कुमार बोला किहे तात ! क्या मैं आपका अप्रिय पुत्र हूँ कि-जो राज्य देने के मिष से मुझे भवरूपी कुए में डालते हो? यह सुन धवल राजा ने मनमें प्रसन्न होकर विमल के छोटे भाई कमल को जो कि कमलदल के समान नेत्र वाला था, राज्य
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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