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________________ विमलकुमार की कथा २५१ मोहादिक शत्रुओं ने किसी समय अकेला देखा । शत्रुओं की संख्या अधिक होने से उन्होंने इसको आघात मारकर जर्जर कर डाला है । जिससे पैदल सैनिक उसे रणभूमि से बाहर लाये हैं । उसे डोली में रखकर उसके घर ले जा रहे हैं। क्योंकि इस जैन पुर में उसके बहुत से बान्धव रहते हैं। हे तात ! तब मैं कौतुक से उस माता के साथ शीघ्र उनके पीछे २ विवेक पर्वत के शिखर पर चढ़ गया । वहां मैंने चित्त समाधान नामक मंडप में राजमंडल के मध्य में उक्त महाराजा को बैठे देखा । सत्य, शौच, तप, त्याग, ब्रह्म और अकिंचनता आदि अन्य मांडलिक राजा भी उक्त माता ने मुझे बताये। इधर उन मनुष्यों द्वारा लाया हुआ संयम राजा को बताया गया, और उसे सकल वृत्तांत कहा गया। इससे उस कारण सें. मोह और चारित्र राजा का उस समय जगत् को भी भय उत्पन्न करने वाला महा युद्ध हुआ। . थोड़े ही समय में सेना सहित चारित्र राजा बलशाली मोह राजा से पराजित हुआ। जिससे वह भागकर अपने किले में आ . घुसा। तब मोह राजा का राज्य स्थापित हुआ और चारित्र धर्म राजा पर जो कि अंदर घुसकर बैठा था उस किले को घेरा डाला गया । मार्गानुसारिता माता बोली कि-हे वत्स ! तू ने यह कुतूहल देखा ? तब मैंने उत्तर दिया कि-हां, आपकी कृपा से बराबर देखा । किन्तु हे माता ! इस कलह का कारण क्या है ? सो मैं स्पष्टतः जानना चाहता हूँ। तब माता बोली कि-हे पुत्र ! सुन रागकेशरी राजा का अति साहसी और त्रैलोक्यप्रसिद्ध विश्याभिलाष नामक मंत्री है । इस मंत्री ने पूर्व में विश्वसाधन
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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