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________________ कृतज्ञता गुण पर और मंद की परस्पर दृढ़ मित्रता हो गई। जिससे वे अति हर्ष से अपने क्षेत्र में एक समय खेलने को आये। उस क्षेत्र के किनारे उन्होंने एक विशाल भाल नामक पर्वत देखा, जो कि-भ्रमर समान काले केशों की श्रेणीरूप वनस्पति से सुशोभित था। भाल पर्वत के नीचे अंधकार मय दो कोठिरियों युक्त नासिका नामक गुफा देखी । उस गुफा में निवास करने वाले घ्राण नामक बालक तथा भुजंगता बालिका के साथ मंद कुमार ने मित्रता करी। बुधकुमार शुद्ध-मन होने से विचारने लगा कि-सज्जनों को परस्त्री के साथ बोलना भी योग्य नहीं, तो मित्रता की बात कैसे हो सकती है ? इसलिये मुझे यह भुजंगता वय॑ है और घ्राण तो अपने क्षेत्र की गुफा का निवासी होने से पालन करने योग्य है । यह विचार कर बुध ने केवल घ्राण ही के साथ मित्रता करी और मंद ने दोनों के साथ । पश्चात् वे दोनों अपने २ घर आये। __ अब भुजंगता के दोष से महामन्द बुद्धि मंद सुगन्धि सूचने में लंपट होकर पद पद पर दुःखी होने लगा । इधर बुध का पुत्र विचार युवावस्था को प्राप्त कर देशान्तर देखने की इच्छा से जैसे तैसे घर से बाहिर निकल पड़ा । वह महान् कौतुकी होने से बाहर भीतर के अनेक देशों में अनेकबार भ्रमण करके अन्त में अपने घर को आ गया । उसके घर आने पर धिषणा व बुध प्रसन्न हुए। सर्व राज्य कर्मचारी प्रसन्न हुए तथा नगर भी आनन्दित हुआ।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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