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________________ २३८ । कृतज्ञता गुण पर जाकर वहां से लौटते दूसरे उत्पात में नन्दीश्व में पहुँच कर तीसरे उत्पात में अपने स्थान पर आ पहुँचता है । ( उर्ध्वगति के हिसाब से ) प्रथम उत्पात से पंडकवन में पहुँचे । दूसरे से नन्दनवन में आवे और तीसरे उत्यात में वहां से यहां आवे। विद्याचारण पहिले उत्पात से मानुषोत्तर पर्वत पर जावे । दूसरे उत्पात से नंदीश्वर जावे और वहां के चैत्यों ( जिन प्रतिमाओं) को वन्दन करके तीसरे उत्पात में वहां से यहां आवे ( उर्ध्वगति में ) पहिले उत्पात में नंदनवन को जाकर दूसरे में पंडकवन में जावे और तीसरे उत्पात में यहां आवे । आशी याने दाढ़, उसमें रहे हुए विषवाला सो आशीविष तथा महाविष ऐसे दो प्रकार के होते हैं । वे दोनों पुनः कर्म और जाति के विभाग से चार प्रकार के होते हैं। क्षीर मधु और सर्पिष् (घृत) ये उपमावाचक शब्द हैं । इनको झरने वाले इन्हीं २ लब्धि वाले हैं। धान्यपूर्ण कोष्ठक ( कोठार) समान सूत्रार्थ को धारण करने वाले कोष्ठ बुद्धि कहलाते हैं। ___ जो सूत्र के एक पद से बहुत सा श्रुत धारण करते हैं, वह पदानुसारी है और जो एक अर्थ पद से अनेक अर्थ समझे वह बीज बुद्धि है। __ आहारक लब्धि वाले को आहारक शरीर होता है। उसका अंतरकाल जघन्य से एक समय है और उनष्ट छः मास है । यह आहारक शरीर उत्कृष्टता से नव हजार आहारक शरीर होते है। चौदहपूर्वी संसार में निवास करते चारबार आहारक शरीर धारण करता है और उसी भव में तो मात्र दो बार धारण कर सकता है।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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