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________________ विनय गुण वर्णन २१७ सो आसन प्रदान, गुरु के आदेश करने का संकल्प करना सो अभिग्रह. उनको वन्दन करना सो कृतिकर्म, उनकी आज्ञा सुनने को उद्यत रहना पग चंपी करना सो शुश्रूषा, गुरु आवे तब उनके सन्मुख जाना सो अनुगमन और गुरु जावे तब उनके पीछे हो जाना सो संसाधन । __वाचिक विनय के चार भेद इस प्रकार हैं:-हितकारी बोलना, मित (आवश्यकतानुसार ) बोलना, अपरूष (मधुर ) बोलना, और अनुपाती-विचार करके बोलना। . . मानसिक विनय के दो प्रकार इस भांति हैं:- अकुशल मन का निरोध करना और कुशल मन की उदीरणा करना, अर्थात बुरा नहीं विचारना और भला विचारना। ___ इस भांति प्रतिरूप विनय परानुवृत्तिमय है, केवलज्ञानी अप्रतिरूप विनय करते हैं। इस प्रकार प्रतिपत्ति रूप तीन प्रकार के विनय का वर्णन किया, अब अनाशातना विनय के बावन भेद हैं यथा तित्थयर-सिद्ध-कुल-गण-, संघ-किरिय-धम्म-नाण-नाणीणं । आयरिय - थेरुवज्झाय -, गणीण तेरस पयाई ।। अणासायणा य भत्ती बहुमाणो तहय वन संजलणां। तित्थयराई तेरस, चउग्गुणा हुँति बावन्ना ।। तीर्थकर, सिद्ध, कुल, गण, संव, क्रिया, धर्म, ज्ञान, ज्ञानी, आचार्य, स्थविर, उपाध्याय और गणी, इन तेरह पद की आशातना करने से दूर रहना, भक्ति करना, बहुमान करना तथा प्रशंसा करना । इस भांति चार प्रकार से तेरह पद गिनते बावन प्रकार होते हैं।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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