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________________ मध्यमबुद्धि की कथा २१५ वे आगमानुसार चिरकाल तक विहार कर, अंत समय आने पर आराधन की विधि संप्राप्त कर, निर्मल ध्यान से कमों को हलके कर मध्यमकुमार आदि स्वर्ग को गये तथा मनीषीकुमार मुक्ति को पहुँचा। . अब गुरु ने बाल के लिये जो भविष्यवाणी कही थी, वह सब वैसी ही हुई। क्योंकि मुनिजन का भाषण अन्यथा नहीं हो सकता। इस प्रकार वृद्धानुगत्व रूप गुणधारी मध्यम बुद्धिकुमार का धर्म कर्म करने से, स्वर्ग व मोक्ष सुख का फल-दाता, कुन्द के पुष्प व चन्द्र समान स्वच्छ यश सुनकर, हे भव्यों ! दुःख रूप तुण को जलाने के लिये अग्नि समान, पुण्य रूप कंद की वृद्धि करने को मेघ समान, संपदा रूप धान्य की उपज के बीज समान तथा सकल गुणोत्पादक इस वृद्धानुगत्व रूप गुण में यत्न करो। इस प्रकार मध्यमबुद्धि का चरित्र समाप्त हुआ। वृद्धानुगत्व रूप सत्रहवा गुण कहा । अब अठारहवें विनयगुण के विषय में कहते हैं विणओ सव्वगुणाणं, मूलं सनाणदंसणाईण । मुक्खस्स य ते मूलं, तेण विणीओ इह पसत्थो ॥२५॥ मूल का अर्थ-विनय ही सम्यक् ज्ञान दर्शन आदि सकल गुणों का मूल है, और वे गुण ही मोक्ष के मूल हैं, जिससे इस जगह विनीत को प्रशस्त माना है।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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