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________________ मध्यमबुद्धि की कथा स्पर्शन के दोष से अन्य कार्य छोड़कर विलास में पड़ा हुआ किंचित् भ्रमित और काम से चैतन्य हीन हो गया । तब मनीषीकुमार ने स्पर्शन की मूल शुद्धि बताकर बाल को कहा किहे भाई! इस स्पर्शन शत्रु का तू किसी भी स्थान में विश्वास मत करना। बाल बोला कि- हे बन्धु ! यह तो सकल सुखदायक अपना उत्तम मित्र है, उसको तू शत्रु कैसे कहता है । मनीषी सोचने लगा कि-यह बाल अकार्य करने में तैयार हो गया है। इसलिये सैकड़ों उपदेशों से भी यह नहीं मानेगा। क्योंकि ऐसा कहा है कि-दुर्विनीत मनुष्य जिस समय अकार्य में प्रवृत्त होवे उस समय सत्पुरुष ने उनको उपदेश न करके उनकी उपेक्षा करना चाहिये। इस प्रकार अपने चित्त में विचार करके मनीषीकुमार ने बाल को शिक्षण देना छोड़ अपने कार्य में उद्यत हो, मौन धारण कर लिया । उक्त राजा की सामान्यरूपा नामक एक रानी थी, और . उसके मध्यमबुद्धि नामक पुत्र था। वह उस समय देशान्तर से घर आया और स्पर्शन को देख हर्षित हो बाल से पूछने लगा कि-वह कौन है ? तब बाल ने उसका परिचय दिया। पश्चात् बाल के कहने से स्पर्शन मध्यमबुद्धि के अंग में घुसा, जिससे वह भी बाल के समान विह्वल चित्त हो गया । ___ मनीषी को इस बात की खबर होते ही उसने मध्यमबुद्धि को स्पर्शन की मूल से की हुई शोध बताई तब मध्यमबुद्धि संशग्न में पड़कर विचार करने लगा कि- एक ओर तो स्पर्शन का सत्सुख है और दूसरी ओर भाई मना करता है । अतएव मुझे क्या करना उचित है सो मैं भली भांति जान नहीं सकता ।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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