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________________ सुबुद्धि मंत्री की कथा मंत्री का यह वचन राजा ने नहीं स्वीकार किया । तदनन्तर किसी समय राजा, सामन्त और मंत्रियों सहित बाहर फिरने को निकला । उस खाई के समीप आते ही दुगंध से घिर कर मुख व नासिका को खूब ढांक कर उतना भूमि भाग पार करने लगा । पश्चात् वह मंत्री आदि से कहने लगा कि- इस खाई का पानी सर्प आदि मृत कलेवरों की दुर्गंधि से बहुत खराब हो गया है । तब वे भी 'हा' करने लगे । १८५ - तब राजा सुबुद्धि मंत्री को कहने लगा कि - अहो ! यह पानी कैसा उद्व ेग करने वाला है ? मंत्री बोला कि हे नरवर! इसमें उद्व ेग पाने का क्या काम है ? कारण कि अगर, चन्दन, कर्पूर और फूल आदि सुगन्धित द्रव्यों से वासित हुए अशुभ पुद्गल भी शुभ होते दृष्टि में आते हैं और कर्पूर आदि अति पवित्र पदार्थ भी देहादिक के सम्बन्ध से अशुभ हो जाते हैं। इसलिये शुभ व अशुभ को बात ही मत करिए । कहा है कि- पुद्गलों का परिणाम विचार करके जैसे वैसे तृष्णा रोक कर आत्मा को शान्त रख विचरना चाहिए । वह सुन राजा कुत्र क्रोधित हो सुबुद्धि को कहने लगा कितू इस प्रकार अपने को व दूसरों को भी असत्य आग्रह में क्यों तानता है ? तब मंत्री विचारने लगा कि अहो ! यह राजा परमार्थ के विशेष का ज्ञाता व जिन-प्रवचन से भावित बुद्धि वाला किस प्रकार से हो सकता है ? पश्चात् उसने संध्या के समय अपने विश्वास पात्र सेवक के द्वारा उस खाई का पानी मंगवा कर, छनवा कर नये घड़ों में रख उनमें सज्जीक्षार डाल कर उनको मुद्रित करवा कर लटका रखे । इस प्रकार दो तीन बार सात-सात रात्रि दिवस प्रयोग करने से
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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