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________________ १८२ विशेषज्ञता गुण पर वाला हो गया। वह गुरु के पास आया तब गुरुने सब वृत्तांत जानकर उन चारों शिष्यों को अपने गच्छ का नीचे लिखे अनुसार अधिकार दिया। पहिले शिष्य को सचित्त अचित्त परठने का काम करने की आज्ञा दी । दूसरे को हुक्म किया कि तूने गच्छ को योग्य भक्तपान उपकरण आदि ला देने का काम बिना थके बजाते रहना चाहिये। तीसरे को कहा कि- तूने गुरु-स्थविर-ग्लानतपस्वी-बालशिष्य आदि मुनियों की रक्षा करना चाहिये, क्योंकि यह कार्य दक्ष व विचक्षण हो वही कर सकता है । अब चौथा जो उन सब में सबसे लघु गुरु भाई था उसको गुरु ने प्रीति पूर्वक अपना सकल गच्छ सौंपा । इस प्रकार जिसको जो योग्य था उसको वह सौंप कर आचार्य परम आराधक हुए और वह गच्छ भी पूर्ण गुणशाली हुआ। उपस्थित प्रकरण में तो दीर्घदर्शी गुण युक्त धनश्रेष्टी के ज्ञात ही का उपयोग है, किन्तु भव्य जनों की बुद्धि उघाड़ने के हेतु उपनय की बात भी कह बताई है। इस प्रकार धन श्रेधी को प्राप्त हुआ निर्मल यशवाला महान् फल सुनकर दीर्घदर्शित्व रूप निर्मल उत्तम गुण को हे भव्यजनों ! तुम धारण करो, अधिक कहने की क्या आवश्यकता है ?. इस प्रकार धन श्रेष्ठी की कथा पूर्ण हुई। सुदीर्घदर्शित्व रूप पन्द्रहवें गुण का वर्णन किया, अब विशेषज्ञता रूप सोलहवें गुण को प्रकट करते हैं। वत्थूणं गुण-दोसे-लक्खेइ अपक्खवायभावेण ।। पाएण विसेसन्न - उत्तम धम्मारिहो तेण ॥२३॥
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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