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________________ १७४ सुपक्षत्व गुण पर कुमार बोला:- रजोहरण और पात्र ला दीजिए । तब राजा ने कुत्रिकापण (सर्व वस्तुएँ संग्रह करने वाले की दुकान ) से दो लक्ष मूल्य में (रजोहरण और पात्र) मंगवाये। लक्ष ( मुद्रा) देकर नापित (नाई ) को बुला राजा ने उसको कहा कि- दीक्षा में लोचने पड़ें उतने केश छोड़कर कुमार के शेष केश काट ले, उसने वैसा ही किया। उन केशों को उसकी माता ने श्वेत वस्त्र में ग्रहण कर अर्चापूजा करके, बांधकर रत्न के डब्बे में रखकर अपने सिरहाने धरा । पश्चात् राजा ने उसे सुवर्ण कलश से स्नान करा कर अपने हाथ से उसका अंग पोंछकर चन्दन का लेप किया। अनन्तर उसे दो वस्त्र पहिना कर कल्पवृक्ष के समान उसे आभूषणों से विभूषित किया। पश्चात् सौ स्तंभ वाली उत्तम पालखी बनवाई। उस पर आरूढ़ होकर कुमार सिंहासन पर पूर्व दिशा की ओर मुख रखकर बैठा और उसको दाहिनी ओर भद्रासन पर उसकी माता बैठी। उसकी बाई ओर उसकी धायमाता रजोहरणादिक लेकर बैठी और एक श्रेष्ठ युवती छत्र लेकर उसके पीछे खड़ी रही उसके दोनों ओर दो चामर वाली व उसके पूर्व की ओर पंखा धारण करने वाली तथा ईशान की ओर कलश धारिणी खड़ी रही। पश्चात् समान रूपवान, समान यौवनवान् , समान शृगारवान हर्षित मनस्क एक सहस्र राजकुमारों ने उस पालखी को उठाई। ___ उस पालखी के आगे भलीभांति सजाये हुए अष्ट मंगल चलने लगे तथा उनके साथ सजाये हुए आठ सौ घोड़े, आठ सौ हाथी और आठ सौ रथ चलने लगे। उनके पीछे बहुत से तलवार, लाठी, भाले तथा ध्वज चिह्न (झंडे) उठाने वाले चले । उनके साथ बहुत से भाट-चारण जय जय शब्द करते हुए चले।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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