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________________ १६४ सत्कथ गुण पर बात (कथा) भी नहीं बोलना । इसलिये जिनेश्वर गणधर और मुनि आदि की सत्कथा रूप तलवार द्वारा विकथा रूप लता को काटकर धर्म ध्यान में हे बहिन ! तू लीन हो। ___ तब वह बोली कि-हे भाई ! पितृगृह ( पीहर ) के समान जिनगृह में आकर अपनी २ सुख दुख की बातें करके क्षणभर स्त्रियां सुखी होवे उसमें क्या बाधा है ? बातों के लिये कोई किसी के घर मिलने नहीं जाती । इसलिये कृपा कर तुमने मुझे कुछ भी न कहना चाहिये । तब उसे सर्वथा अयोग्य जानकर वह श्रावक चुप हो गया । इधर रोहिणी भी बहुत विलंब से घर आई तो उसके पिता ने उसे कहा हे पुत्री ! लोक में तेरी विकथा के विषय में बहुत चर्चा चल रही है । यह ठीक नहीं । क्यों कि-सत्य हो अथवा असत्य किन्तु लोकवाणी महिमा का नाश करती है। ___ स्पष्ट बोलने में आती हुई लोकवाणी विरुद्ध अथवा सत्य वा असत्य हो तो भी सर्व जगह महिमा को हर लेती है देखो सकल अंधकार का नाश करने वाला सूये तुला से उतर कर भी जब कन्या राशि में गमन करता है तब कन्यागामी कहलाने से उसका वैसा तेज नहीं रह सकता। इसलिये हे पुत्री ! जो तू सुख चाहती हो तो मुक्ति से प्रतिकूल वर्ताव करने वाली और नरक के मार्ग समान परनिन्दा छोड़ दे । जो तू फक्त एक काम से अखिल जगत् को वश करना चाहती हो तो परापवाद रूप घास में चरती हुई तेरी वाणी रूप गाय को रोक रख । जितना परगुण और परदोष कहने में अपना मन लगा रहता है उतना जो विशुद्ध ध्यान में रुकता होय तो कितना लाभ होवे ?
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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