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________________ पुरन्दरराजा की कथा १४९ महा बलवान् हो तो उठकर धनुष पकड़कर युद्ध करने को तैयार हो । कारण कि कायर पुरुष होते हैं वे ही पीठ फेरते हैं। तब कुमार के अनुपम शौर्य से आकर्षित होकर विद्याधर उसे कहने लगा कि- मैं तेरा किंकर ही हूँ, अतः जो उचित हो सो आज्ञा कर। (इस समय ) राजपुत्री सोचने लगी कि, जगत् में वे ही शूर कहलाते हैं कि- जो इस प्रकार गर्विष्ट शत्रुओं से भी प्रशंसा पाता है । अब कुमार उक्त राजपुत्री को आश्वासन देकर नंदीपुर की ओर रवाना हुआ इतने में मणिकिरीट ने कहा कि- आज से यह बंधुमती मेरी बहिन है, और हे कुमार ! तू मेरा स्वामी है । इसलिये कृपा करके आपके चरणों से मेरा नगर पवित्र कीजिए । तर कुमार दाक्षिण्यवान् होने से राजकुमारी सहित गंधसमृद्ध नगर में गया। विद्याधर ने उनका बहुत आगत स्वागत किया। पश्चात् राजकुमार उक्त विद्याधर तथा राजपुत्री के साथ उत्तम विमान पर आरूढ़ होकर नंदीपुर के समीप आ पहुँचा। एक राजा ने आगे जाकर शर राजा को बधाई दी जिससे वह भारी सामग्री से कुमार के सन्मुख आया । पश्चात् कुमार और कुमारी ने उक्त विमान से उतर कर सजाये हुए बाजारों से सुशोभित उस नगर में बड़ी धूमधाम से प्रवेश किया । उन्होंने आकर राजा के चरणों में नमन किया । जिससे राजा ने हर्षित होकर उनका अभिनंदन किया। पश्चात् कुमार ने राजा को विद्याधर का सकल वृतान्त कहा । तब शर राजा ने अति हर्षित होकर बड़ी धूम-धाम से पुरन्दर कुमार से बंधुमती का विवाह किया। ____ वहां श्रेष्ठ प्रासाद में रह कर मनवांछित सर्व विषय भोगते हुए दोगुदुक देव के समान कुमार ने बहुत काल व्यतीत किया ।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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