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________________ पुरन्दरराजा की कथा इसलिये अच्छा है कि मैं देशान्तर को चला जाऊं। जिससे सब दोषों की निवृत्ति हो जायगी। ऐसा हृदय में विचार करके हाथ में भयंकर काली तलवार ले नगरी से निकल कर कुमार कुछ आगे चला। इतने में उसको एक ब्राह्मण मिला । वह बोला कि -हे कुमार ! मुझे संदर्भ देश के शृगार रूप नन्दिपुर नगर में जाना है । ___ कुमार बोला कि, मैं भी वहीं चलता हूँ, इसलिये ठीक साथ मिला । यह कह कर दोनों जने हँसते हँसते आगे चले। इतने में उनको बहुत से पत्थर व भाले फेंकते हुए भीलों के समूह का सरदार वज्रभुज नामक पल्लीपति (डाकू) मिला। उसने राजपुत्र को कहा कि यह मत कहना कि मैंने तुझे परिचय नहीं दिया । मैं तेरे बाप का कट्टर दुश्मन हूँ। तब ब्राह्मण घबराया। उसे आश्वासन देकर कुमार बोला कि-मेरे पिता के दुश्मन के साथ जो कुछ करना उचित है उसे यह बालक करने के लिये तैयार है। तो भी करुणा वश यह क्षण भर रुकता है। कुमार का यह चतुराई युक्त वचन सुनकर पल्लीपति क्रुद्ध हो उस पर बाण वर्षा करने लगा। उन बाणों को प्रचंड पवन की लहरों के समान तलवार द्वारा विफल करके कुमार लगाम पकड़ कर उक्त डाकू के रथ पर चढ़ गया । व उसकी छाती पर पैर रख हाथों से हाथ पकड़ कर बोला कि-बोल ! अब तुझे कहां मारू तब वह बोला कि-जहां शरणागत रहता है वहां । तब कुमार सोचने लगा कि इस वचन से यह क्षमा मांगता जान पड़ता है, कारण कि शरणागत को महान् पुरुष मारते नहीं, कहा है कि-अंधे को, दीन वचन बोलने वाले को, हाथ पैर हीन को, बालक को, बृद्ध को, अति क्षमावान् को, विश्वासी को, रोगी,
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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