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________________ पुरन्दरराजा की कथा १३९ बहुत गुण वाले तो विरले ही निकलते हैं परन्तु एक एक गुणवाला पुरुष भी सब जगह नहीं मिल सकता । ( अन्त में निर्गुणी होते हुए भी) जो निर्दोष होता है उसका भी भला होगा और जो थोड़े दोष वाले हैं उनकी भी हम प्रशंसा करते हैं। उपरोक्तानुसार संसारस्वरूप सोचता हुआ गुणरागी पुरुष निर्गुणों की भी निंदा नहीं करता, किन्तु उपेक्षा रखता है अर्थात् उस ओर मध्यस्थ भाव से रहता है । तथा गुणों का संग्रह याने ग्रहण करने में प्रबृत्त रहता है याने यत्न रखता है और संप्राप्त हुए याने अंगीकार किये हुए सम्यक्त्व तथा व्रतादिक को मलीन नहीं करता याने कि उनमें अतिचार नहीं लगाता. पुरन्दर राजा के समान । पुरन्दर राजा की कथा इस प्रकार है। अमरावती के समान सकल अमर ( देवताओं) को हितकारी वाराणसी नामक नगरी है। वहां शत्रुसैन्य का निई लन करने वाला विजयसेन नामक राजा था। उसकी कमल की माला समान गुणयुक्त कमलमाला नामक रानी थी । उसका इन्द्र समान सुन्दर रूपवान पुरन्दर नामक पुत्र था । वह स्वभाव ही से गुणों पर राग रखने वाला और सुशील था जिससे सारे नगर में निरन्तर उसके गुण गाये जाते थे। पंडित, भाट चारण और सुभटजन अपना अपना काम छोड़कर उक्त कुमार की बुद्धि, उदारता और शौर्य की प्रशंसा करते हुए सारे नगर में फिरते थे । उसे ऐसा गुणवान सुनकर व देखकर राजा की एक दूसरी मालती नामक रानी उस पर अतिशय अनुरक्त होगई।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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