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________________ यशोधर की कथा ११९ चोर एक वृद्ध मनुष्य को मार अमुक मनुष्य का घर लूटकर मणि, सुवर्ण तथा रत्न आदि धन ले जा रहा था । इसे मैं आज पकड़ लाया हूँ। अब आप का अधिकार है। - तब धर्मशास्त्र पाठी (न्याय शास्त्री) के समक्ष उसका अपराध कहकर राजा ने उनको पूछा कि, इसे क्या दंड देना चाहिये, तब वे बोले इसके हाथ, पैर और कान काटकर इसे मार डालना चाहिये । यह सुन राजा सोचने लगा कि, धिकार है इस राज्य को । कारण कि इसमें जीव वध, अलोक भाषण अदत्तग्रहण, अब्रह्मचर्य आदि कुगति के द्वार समान आश्रव द्वार प्रवर्तित हो रहे हैं। .. यह सोचकर सुदत्त ने अपने आनन्द नामक भानजे. को, राज्य देकर सुधर्म गुरु से दीक्षा ली है। यह बात सुन राजा ने हर्षित हो तुरत घोड़े पर से उतर कर मुनीन्द्र को वन्दन किया। तब मुनि ने उसे धर्मलाभ दिया । .. __ अब राजा मुनि का शान्तस्वरूप देख तथा कान को सुख देने वाले उनके वचन सुनकर शर्म से नतमस्तक हो मन में पश्चाताप करने लगा। मैं ने इस ऋषि का घात करने का उद्यम किया है इसलिये मेरी किसी भी प्रकार से शुद्धि नहीं हो सकती, अतएव इस तलवार से कमल के समान मेरा सिर उतार लू। राजा इस प्रकार चिन्तवन कर रहा था कि उसे मनोज्ञानी मुनि ने कहा:- ऐसी चिन्ता करने की आवश्यकता नहीं, क्योंकि आत्मवध करना निषिद्ध है । कहा है कि- जिन वचन को जानने वाले और ममत्व रहित मनुष्यों को आत्मा व पर आत्मा में कुछ भी विशेषता नहीं । इसलिये दोनों की पीड़ा परिवर्जित करना चाहिये।
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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