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________________ दयालुत्व गुण पर - मानो सात भूमि वाले महल के ऊपर एक सिंहासन पर वह बैठा है। उसे प्रतिकूल भाषिणी माता ने नीचे गिरा दिया। वहां वह व उसकी माता गिरते-गिरते ठेठ पहिली भूमि पर आ पहुँचे तथापि वह उठकर जैसे तैसे उक्त मेरु-पर्वत समान महल के शिखर पर चढ़ा। ... अब नींद खुल जाने पर राजा सोचने लगा कि-कोई भयंकर फल होने वाला है । तो भी यह स्वप्न परिणाम में उत्तम है, अतएव क्या होगा इसकी खबर नहीं पड़ती। इसी बीच प्रभात काल के निवेदक ने पाठ किया कि, सद्वृत्त (गोल) गेंद के समान जो सद्वृत्त (श्रेष्ठ आचारण वाला) हो, वह दैव योग से गिरगया होवे तो भो पुनः ऊंचा होता है । उसकी अवनति (गिरीदशा) चिरकाल तक नहीं रहती। अब प्राप्तः कृत्य करके राजा राजसभा में बैठा, इतने में बहुत से नौकर चाकरों के साथ यशोधरा वहां आई। राजा उठकर सामने गया और उसे उच्च आसन पर बिठाई । वह पूछने लगी कि-हे वत्स! कुशल है.? राजा बोला कि- माता ! आप के प्रसाद से कुशल है। ___ राजा विचार करने लगा कि- मैं व्रत ग्रहण करूगा यह बात माता किस प्रकार मानेगी? कारण कि उसका मुझ पर बड़ा अनुराग है । हां, समझा, एक उपाय है। मुझे जो स्वप्न आया है वह कह कर पश्चात् यह कहूँ कि उसके प्रतिघात का हेतु मुनिवेष है, इसे वह मानलेगी और मैं दोक्षित हो सदूंगा। यह सोचकर उसने माता को कहा कि- हे माता! मैंने ऐसा स्वप्न देखा है कि, मानो आज गुणधर कुमार को राज्य देकर मैं प्रव्रजित हो गया। पश्चात् मानो धवलगृह से गिर गया इत्यादि
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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