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________________ १०४ दयालुत्व गुण पर ऐसी कोई दीक्षा, भिक्षा, दान, तप, ज्ञान अथवा ध्यान नहीं कि जिसमें दया न हो। इसी कारण से यहां याने धर्म के अधिकार में दयालु याने दया के स्वभाव वाला पुरुष मांगा है याने गवेषित किया है । कारण कि वैसा पुरुष यशोधर के जीव सुरेन्द्रदत्त महाराजा की तरह अल्प मात्र जीव-हिंसा के दारण - विपाक जान कर जीव-हिंसा में प्रवर्तित नहीं होता। यशोधरा का चरित्र इस प्रकार है। दया धर्म ही को प्रगट करने वाला, हिंसा के दारुण फल को बताने वाला, वैराग्य रस से भरपूर यशोधरा का कुछ चरित्र कहता हूँ। उज्जयिनी नामक एक नगरी थी । वहां के लोग निर्मल शीलवान होकर धनाढ्य होते हुए भी कभी पर-स्त्री की ओर न देखते थे। वहां अमर ( देवता) के समान शुभ आशयवाला अमरचन्द्र नामक राजा था। उसकी उत्तम लावण्य से मनोहर यशोधरा नामक रानी थी । उनका सुरेन्द्रदत्त नामक पुत्र था । वह सुरेन्द्र जैसे विबुधों (देवों) को खुशी करता है वैसे विबुधों (पंडितों) को खुशी करता था । किन्तु सुरेन्द्र जैसे गोत्रभिद् (पर्वतों को तोड़ने वाला) तथा वनकर ( हाथ में वज्र धारण करने वाला) है। वैसे वह गोत्रभिद् ( कुटुम्ब में भेद पटकने वाला) अथवा वैरकर (शत्रुता करने वाला) न था। उसकी नयनावली नामक स्त्री था. वह अपने संगम से काम को जीवित करने वाली थी। शरदऋतु के चन्द्रमा समान मुखवाली थी तथा नीलोत्पल के समान नयन वाली थी। एक दिन राज्य का भार पुत्र को सौंपकर पुण्यशाली
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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