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________________ लजालुत्व गुण पर - पश्चात् उसने अपनी दस हजार वर्ष की स्थिति जानकर उस देवता से कहा कि-हे परकार्यरत देव ! मैं मनुष्य होउं तो वहां भी मुझे तू ने प्रतिबोध देना।। ___ देव ने यह बात स्वीकार की। पश्चात् वह व्यंतर वहां से च्यवन करके तू हुआ है, यद्यपि तू एकान्त शूरवीर है, तथापि अभी तक धर्म का नाम तक नहीं जानता । इसीसे तुझे प्रतिबोध करने के लिये मैंने यह भारी माया की है, कारण कि-मानी पुरुष पीछे पड़े बिना प्रतिबोध नहीं पाते। ___ यह सुनने के साथ ही उसे जाति-स्मरण होकर अपना चरित्र स्फुटतः भासमान हुआ। जिससे वह कुमार उक्त देव से विनंती करने लगा कि- तूने मुझे भलीभांति बोधित किया है। तू ही मेरा मित्र है। तू ही मेरा बन्धु है । तू ही सदैव मेरा गुरु है। यह कह उक्त देव का दिया साधु वेर ग्रहण कर व्रत अंगीकार किये। __पश्चात् कुमार कायोत्सर्ग में स्थित हुआ, और देवता उसे खमाकर व नमकर अपने स्थान को गया इतने में सूर्योदय हुआ। उसी समय जयतुंग राजा भी कुमार को ढूढता हुआ वहां आ पहुँचा । वह पुत्र को ( साधु हुआ) देखकर उदास हो शोक से गद्गद् हो कहने लगा कि- हे स्नेहवत्सल वत्स ! तू ने इस प्रकार हमको क्यों छला ? हे निर्मल यशस्वी पुत्र ! अभी भी तू राज्य-धुरी धारण करने के लिये धवलत्व धारण कर । वृद्धावस्था को उचित इस व्रत का तू त्याग कर । हे शक्तिशाली व न्यायी कुमार ! तेरे वचनामृत का इस जन को पान करा। .. इस प्रकार बोलते हुए उस तीव्र मोहवान् राजा को बोध देने के लिये कुमार मुनि कायोत्सर्ग छोड़कर इस प्रकार कहने
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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