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________________ क्षुल्लककुमार की कथा भोग की इच्छा स्कुरित होने से भग्न परिणाम होते भी वह बात स्वीकार की। ___ बारह वर्ष सम्पूर्ण हो जाने के अनन्तर पुनः उसने माता को पूछा, तब वह बोली कि-हे वत्स ! तू अपनी माता समान मेरी गुरुआनी को पूछ । तदनुसार उसने गुरुआनी को पूछा तो उस महत्तरा ने भी और बारह वर्ष रहने की प्रार्थना करके उसे रोक रखा । इसी प्रकार तीसरी बार आचार्य ने उसे बारह वर्ष रोक रखा। ___ चौथी बार उपाध्याय ने बारह वर्ष रोका । इस प्रकार अड़तालीस बर्ष बीत जाने पर भी उसका मन चारित्र में लेश मात्र भो धैर्यवान न हुआ। तब सब सोचने लगे कि- मोह के विष को धिक्कार है कि जिसके वश हो जीव किसी भी प्रकार अपने को चैतन्य नहीं कर सकते । यह विचार कर आचार्यादि ने उसकी उपेक्षा की। तब उसके पिता के नाम की अंगूठी और कम्बल रत्न जो पहिले से रख छोड़े थे वे माता ने उसे देकर कहा कि- हे वत्स ! यहां से और कहीं भी न जाकर सीधा साकेतपुर में जाना, वहां पुडरिक नामक राजा है, वह तेरा बड़ा बाप (ताऊ) होता है। उसे तू यह तेरे बाप के नाम की मुद्रा तथा कंबलरत्न बताना ताकि वह तुझे बराबर पहचान कर राज्य का भाग देगा। यह बात स्वीकार कर तथा गुरु को नमन करके वह वहां से निकला और लक्ष्मी के कुलगृह समान साकेतपुर में आ पहुंचा। ___ उस समय राज महल में नाटक हो रहा था । उसे देखने के लिये नगर जनों को दौडादौड़ करते देख क्षुल्लककुमार भी
SR No.022137
Book TitleDharmratna Prakaran Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShantisuri, Labhsagar
PublisherAgamoddharak Granthmala
Publication Year
Total Pages308
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size20 MB
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