SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 41
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २४ जिनोक्तमिति सद्भक्त्या ग्रहणे द्रव्यतोऽप्यदः । बाध्यमानं भवेद्भावप्रत्याख्यानस्य कारणम् ॥८॥ भावार्थ--'जिनेश्वर देव ने फरमाया है' ऐसे सद्भक्तियुक्त खंडित होने वाले प्रत्याख्यान को द्रव्यरूप से यदि ग्रहण किया जाय तो भी वह भाव-प्रत्याख्यान का कारण बनता है । चूकि इसके साथ जिनों की आज्ञापालन का ध्येय होता है, अतः इसको द्रव्य प्रत्याख्यान जानकर ग्रहण करने के साथ 'जिनकथित हैं' ऐसा भ्यान अवश्य रहना - चाहिये-[८]. ज्ञानाष्टकम् [६] विषयप्रतिभासं चात्मपरिणतिमत्तथा। तत्त्वसंवेदनं चैव ज्ञानमाहुमहर्षयः ॥१॥ भावार्थ-महर्षिों ने ज्ञान तीन प्रकार का कहा है :(१) विषयप्रतिभास रूप (२) आत्मपरिणतिमत् और ( ३) तत्त्वसंवेदन रूप--[१]. विषकण्टकरत्नादौ बालादिप्रतिभासवत् । विषयप्रतिभासं स्यात् तद्धेयत्वाद्यवेदकम् ॥२॥
SR No.022134
Book TitleAshtak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharvijay
PublisherGyanopasak Samiti
Publication Year1973
Total Pages114
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy