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________________ मोक्षाष्टकम् [३२] कृत्स्नकर्मक्षयान्मोक्षो जन्ममृत्य्वादिवजितम् । सर्वबाधाविनिर्मुक्त, एकान्तसुखसङ्गतः ॥१॥ भावार्थ-जन्म मरणादि रहित, किसी भी प्रकार की बाधा से रहित, एकान्त सुख अर्थात् आनन्द-युक्त मोक्ष सकल कर्म के क्षय से होता है । [१]. यन्न दुःखेन संभिन्नं न च भ्रष्टमनन्तरम् । अभिलाषापनोतं प्रत्तज्ज्ञ यं परमं पदम् ॥२॥ ,, भावार्थ-जो पद अर्थात् स्थान दुःख से मिश्र नहीं है, जो उत्पन्न होने के बाद कभी-नष्ट नहीं होता, जो सदा इच्छाओं से रहित है-उसे परम पद मोक्ष कहते हैं ।--[२]. कश्चिदाहान्नपानादिभोगाभावादसङ्गतम् । सुखं वै सिद्धिनाथानां प्रष्टव्यः स पुमानिदम् । ॥३॥ किंफलोऽन्नादिसम्भोगो बुभुक्षादिनिवृत्तये । तन्निवृत्तेः फलं किं स्यात्स्वास्थ्यं तेषां तु तत्सदा ॥४॥ भावार्थ-कोई मनुष्य यों कहे कि अन्नपानादि भोगों का प्रभाव होने से मोक्ष में सिद्धों को सुख मिलता है यह कहना असंगत है। तो उससे यह पूछना चाहिये-कि अन्न आदि का संभोग किसलिये है ?
SR No.022134
Book TitleAshtak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharvijay
PublisherGyanopasak Samiti
Publication Year1973
Total Pages114
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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