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________________ सपा प्रात्मा सर्वव्यापक नहीं है । अतः केवलज्ञान का भात्मा के बाहर ममनागमन भी नहीं होता, ऐसा ही कहा है--[0]. तीर्थकृदेशनाष्टकम् [३१] वीतरागोऽपि सवेद्यतीर्थकृन्नामकर्मणः । उदयेन तथा धर्मदेशनायां प्रवर्तते ॥१॥ भावार्थ--तीर्थंकर, नाम-कर्म को वेधने हेतु अर्थात् क्षीण करने हेतु तीर्थङ्कर नाम-कर्म के उदय हो जाने के कारण वीतराग होकर भी उपयुक्त प्रकार से धर्मदेशना देते हैं-[१]. वरबोधित प्रारभ्य परार्थोद्यत एव हि । तथाविधं समादत्ते कम स्फीताशयः पुमान् ॥२॥ भावार्य-उत्तम सम्यग्-दर्शन की सम्प्राप्ति के समय से ही परोपकार में तत्पर उदार प्राशय वाले महानुभाव ही तीर्थकर नाम-कर्म बांधते है--[२]. यावत्सतिष्ठते तस्य तत्तावत्संप्रवर्तते। तत्स्वभावत्वतो धर्मदेशनायां जगद्गुरुः भावार्थ--जगद्गुरु तीर्थङ्कर नाम-कर्मोदय विद्यमान होने तक धर्मदेशना करते हैं यह उनका स्वभाव ही है, अतः वे धर्मदेशना देते ही हैं--[३]
SR No.022134
Book TitleAshtak Prakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorManoharvijay
PublisherGyanopasak Samiti
Publication Year1973
Total Pages114
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size6 MB
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