SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 332
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (३३०) पाउलश्री कुमरें जई ते वृदनुं फूल तोडी सूंघ्यु, एटले तरतज ते गधेडो बनी गयो, जे महोटातुं कर्वा न करे, ते पुःखी थाय. ___ पन्नर दिवसने अंतरे ते विद्याधर श्राव्यो, तेणे कुमरने गर्दनाकारें दीगे, तेवारें बीजा वृदनुं फूल सूंघाडीने फरी खानाविक जेवो हतो तेवो मनुष्य कस्यो. कुमरे ते बेहु वृदनां फूल लई पोतानी गांठे बांध्यां , पड़ी विद्याधरे तेने तिहांथी उपाडीने कांचनपुरें जश् मूक्यो. फरी श्रकायें दोगे, तेवारें कदेवा लागी के दे स्वामी ! तमें केवी रीतें श्राव्या? कुमरें कडं के हुँ देवताना प्रजावथी श्रहीं श्राव्यो बु. तेने वली पण अक्का कपट वचनें करी घेर तेडी श्रावी अने कहेवा लागी के हे स्वामी ! तमें देहरामांहे गया, एटलामा कोइएक देवतायें आवीने चांखडीसहित मुझने उपाडीने समुपमा नाखी दीधी. हुं महोटा कष्टें मरती मरती घेर श्रावी बु. कुमर बोल्यो के महारी उपर यदें तुष्टमान थश्ने घणुं अव्य मुऊने आप्यु. तथा वली बे औषधियो आपी, तेमां एक औषधिना योगथी नवयौवनपणुं प्राप्त थाय, ते सांजली अक्का बोली जो महारी :
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy