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________________ (२३७) हवे मायात्यागनो प्रक्रम कहे . मालिनीटत्तम् ॥ कुशलजननवंध्यां सत्यसूर्यास्तसंध्याम्, कुगतियुवतिमाला, मोहमातंगशालाम, ॥शमकमलहिमानीं यशोराजधानीम, व्यसनशतसदायां, दूरतोमुंच मायाम् ॥ ५३॥ अर्थः-हे जव्यजन ! (मायां के०) कपटने (दूरतो के०) दूरथकी ( मुंच के० ) मूक. ए माया केहवी ? तो के (कुशल के०) देमना ( जनन के) उत्पन्न करवामां (वंध्यां के०) वंध्या स्त्री समान, तथा ( सत्यसूर्यास्तसंध्यां के० ) सत्यवचनरूप जे सूर्य तेना अस्तने मा. संध्यासमान बे, वली (कुगतियुवतिमालां के० ) कुगतिरूप जे स्त्री तेने पहेरवानी माला समान बे. वली (मोहमातंगशाला के० ) मोहरूप हस्तीने बांधवानी शाला समान , वली (शमकमल हिमानी के०) उपशमरूप जे कमलो तेनी ऊपर पडावामां हिमसमान ने वली (ऽर्यशोराजधानी के ) अपकीर्त्तिने रहेवाने निवासनगरी , वली (व्यसनशतसहायां
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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