SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्तावना. “ "" सिंदूर प्रकर या अपूर्व ग्रंथमां तेना कर्त्ता श्री शोमप्रजाचार्य महाराजे नीति आदि विषयोनुं यथातथ्य एवं तो निरूपण करेलुं वे के, ते वांचक वर्गना हृदयमां वांचवानी सार्थेज निति विगेरेनी सजाड बाप बेसाडी दे बे. या अलौकीक ग्रंथ प्रथम शेठ जीमसी जाइए " जैनकथा रत्नकोष ना " प्रथम जागमां बपावेल हतो. ते ग्रंथनी तमाम प्रतो थरही बे. तेज या ग्रंथनी महत्वत्ता दर्शावी थापे बे. तेमज तेन मांगणी घेणे स्थलेथी थाय बे तेथी अमोए आ " सिंदूर प्रकर " ग्रंथ मूल, टीका, जाषा बालावबोधाने तमाम कथा सहित जूदो बपाव्यो बे. ग्रंथ वांच्या पी ते फरी फरी वांचवा मन थाय बे. मतलब तेमां समावेल विषय धर्मोपयोगी होवानी साथै संसार व्यवहारीपयोगी पण होवाथी ए ग्रंथ कंठाग्रे यतां अलभ्य लाभ आपवा परिपूर्ण सम बे. वांचनार साहेबोने तेंमां निरुपण करेली बाबत piage वाज स्वरुपे परिणम्या रहे नहीं एवी ए ग्रंथकारनी चमत्कृति बे, घने तेथी तेमांना विषयो
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy