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________________ ( ११ ) अर्थकामौ न जवतः । येन पूर्वजन्मनि धर्म्मः कृतो नवति तस्यैवात्रार्थकामौ जवतः नान्यस्य ॥ यडुक्तं किं जंपिए बहुणा, जं जं दी सई समछ जियलोए || इंदीयमणा निरामं तं तं धम्मं फलं सवं ॥ २ ॥ यतः कारणात् त्रिवर्गे धर्म्मएव श्रेष्ठः ॥ जो नव्यप्राणिन्नेवं ज्ञात्वा मनसि विवेकमानीय श्रीस प्रणीतो धर्म एवाचरणीयः धर्माचरतां सतां यत्पुण्यमुत्पद्यते तत्पुण्यप्रसादात् उत्तरोत्तरमांगलिक्यमाला विस्तरंतु ॥ ३ ॥ भाषाकाव्य :- पुरुष तीन पदारथ साधहिं, धरम विशेष जानि श्राराधहिं ॥ धरम प्रधान कहें सब कोर, रथ काम धरमदीतें होइ ॥ धरम करत संसार सुख, धरम करत निरवान ॥ धरमपंथ साधन विना, नर तिरियंच समान ॥ ३ ॥ माटे धर्मने विषे प्रमाद न करवो, धर्मोद्यम करवाने प्रसादें ललितांग कुमर सुख पाम्यो, अने धर्म नही करवायी सननामा सेवक दुःख पाम्यो ते बेहुनी कथा कहे . कथाः - एइज जरतत्रने विषे श्रीवाल नामें नगर बे. तिहां नरवाहन नामें राजा राज्य करे बे,
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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