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________________ ( १४२ ) करनां प्रासाद करी मानोपेत प्रतिमा जरावी. ए रीतें श्रीसंघनी नक्ति करी अनुक्रमें यारीसाजवनमां रूप जोतां श्रनित्यजावना जावतां मनमां वैराग्य वृद्धि करतां श्रा संसारमां सार ते एक धर्मज बे. एम कहेतां कहेतां केवलज्ञान पाम्या. तेनो देवतायें महोत्सव कस्यो. चोराशी लाख पूर्वनुं श्रायु जोगवी मोदें गया. तेमनो पुत्र श्रीसूर्ययश थयो, तेणें पण जरतेश्वरनी पेठेंज श्रीसंघनी जति करी. उर्वशी प्रमुख देवांगनायें परीक्षा कीधी पण चलायमान थयो नही. तेमने पण श्ररीसामां रूप जोतां केवलज्ञान उपन्युं ने मोदें गयो. तेमनो पुत्र महायश, तेमनो पुत्र प्रतिबल, तेमनो पुत्र बलनड़, तेमनो पुत्र बलवीर्य, तेमनो पुत्र कृतवीर्य, तेमनो पुत्र जलवीर्य, तेमनो पुत्र थामे पाटें दंवीर्य. ए सर्व त्रण खंगना जोक्ता थया, चतुर्विध श्री संघनी नक्तिना करनार था. इहां जरतनी पाउल ब कोडी पूर्व वर्ष गयां, तेवारें सौधर्मेंदें अवधिज्ञानने प्रमाणें स्तवना करी पोतें अयोध्यामांदे यावी ज्ञानादिक गुण जणाववा माटें यज्ञोपवित धारी बार व्रतनां बार तिलक करयां. ते श्रवसरें दंगवीर्य राजायें ई
SR No.022132
Book TitleSindur Prakar
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherShravak Bhimsinh Manek
Publication Year
Total Pages390
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size21 MB
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