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________________ __( ४ ) 'ध्यान' याने किसी भी विषय पर एकाग्र मन । ध्यान के लिए मन तो एक साधन मात्र है । ध्यान करने वाली तो आत्मा ही है। इससे 'मन से कैसी प्रवृत्ति करवाना' यह आत्मा की सुनसफी (स्वेच्छा की बात है। शुभ अथवा अशुभ ध्यान आत्मा जैसी इच्छा करे वैसा कर सकती हैं । अतः शुभाशुभ ध्यान द्वारा सुखदुख, शान्ति अशान्ति और कर्मबन्ध कर्मक्षय करने वाले हम स्वयं ही हैं। यदि हम अपने इस स्वातन्त्र्य को समझ लें, तो मन को अशुभ से रोक कर शुभ ध्यान में प्रवृत करके उसके अनुपम लाभ लेते रहें। 'ध्यानशतक' शास्त्र शुभ अशुभ ध्यान पर अद्भुत प्रकाश डालता है। अशुभ ध्यान के रूप में आर्त्तध्यान और रौद्रध्यान का स्वरूप क्या है, उसके कितने प्रकार हैं, वह किन किन कारणों से तथा कहां कब जाग उठता है, उनके बाह्य लक्षण कौन २ कि जिन पर से पहचाने कि भीतर ये वर्तमान हैं, उनमें लेश्या कौन सी होती है, कौन कौन कक्षा के जोव वह करते हैं, उसका फल क्या? इत्यादि बातों का सुन्दर व मजबूत खियाल इम शास्त्र से मिलने पर हमें खयाल आता है कि हम कहां खड़े हैं और जीवन का बहुत बड़ा हिस्सा कैसे अशुभ ध्यान में बरबाद हो रहा है तथा इस दुर्दशा को कैस रोका जा सकता है। इसी तरह ध्यानशतक शास्त्र शुभ ध्यान के रूप में धर्मध्यान तथा शुभ ध्यान पर सुन्दर विस्तृत प्रकाश डालता है। वह बताता है कि ये शुभ ध्यान लाने की भूमिका में क्या क्या करना चाहिये, इन ध्यानों के प्रकार कैसे हैं, उन प्रत्येक में क्या क्या चिन्तन करना चाहिये या सोचना विचारना चाहिये, किस आधार से इन में चढा जा सकता है, उनके अधिकारी (योग्य) कौन है, योग्य देश काल व
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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