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________________ ( ३७ ) (३) 'रोगादि की पीड़ा में मुझ से विशिष्ट तपस्या या आगम अध्ययन के लिए जरुरी योगोढहन की क्रिया नहीं हो सकती। तो औषधादि का सहारा लेकर यह उद्यम करु ।' ऐसा योगोद्वहन का उद्देश्य हो। (४) 'मेरे सिर पर मुनिगण को शास्त्रानुसार सारणा, वारणा आदि करके उसके द्वारा उन्हें बराबर सम्हालने की जिम्मेदारी है, पर इस वेदना में वह अदा नहीं हो सकती। तो औषधादि का अपवाद सेवन करके गण रक्षा अच्छी तरह कर लू।' ऐसा गणरक्षा . का उद्देश्य हो। (५) उपरोक्त आलंबनों की गाथा में 'च' पद से अन्य उद्देश्य । भी लिये जा सकते हैं। जैसे 'वेदना में मैं उपबृहणा, स्थिरीकरण, साधर्मिक वात्सल्य आदि दर्शन के आचार तथा जिनदर्शनादि अनुष्ठान नहीं कर सकता।' 'गुरु आने पर खड़ा होना' आदि अभ्युस्थानादि विनय रूप ज्ञानाचार का पालन नहीं कर सकता। समिति, गुप्ति, भिक्षाटन, निर्दोष मोचरी, इच्छाकारादि साधु समाचारी आदि का अच्छी तरह पालन नहीं कर सकता। अत: औषधादि लेकर उसे अच्छी तरह करूं।' इस तरह दर्शनादि के आचार पालन के उद्देश्य से दवा करे। ___इसमें से किसी भी उद्देश्य से औषधादि का सेवन करे, उसे 'सालंबसेवी' कहते हैं। वह करके उन उद्देश्यों का पालन करने में ही वह लग जावेगा। अत: क्रमशः वह आगे बढता हुआ अन्त में मोक्ष प्राप्त कर लेता है । सवाल मात्र यह है कि कैस औषधों वगैरह का संवन करें ? सेवन करने की औषधियां ऐसी हों जो निरवद्य या अल्पसावद्य हों। अवध अर्थात् पाप। खास तौर से जिसमें साक्षात् या परम्परा
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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