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________________ ( २३ ) हर्ष हो जाय पर समय जाने पर यही विषय दु:खद बनता है। मानो अचानक ही कोई ५०००) रु० कमाता है तो उसे हर्ष होगा, परन्तु इतने में यदि जाना कि पास वाला तो १०,०००) रु. कमा गया तो तुरन्त ईर्ष्या या विषाद दिल में उठता है। स्वयं कमा लेने पर यह दशा है । अथवा पैसा कमाने के बाद उसे 'कहां रखू? कहां खर्च करूं? उस कमाई से नई कमाई क्या हो सकती है ?' आदि चिंता खड़ी हो जाती है। यह भी एक प्रकार की चिंता, बेचैनो, मनस्ताप (दुःख) के रूप में विषाद ही है। अत: विषय विषाद कराने वाले ही हैं। अनिष्ट विषयों के बारे में तो तीनों काल-सम्बन्धो बोझ या चिता रहती है। ये विषय दिन भर में कितने ? भूख, तृष्णा, सरदी गरमी, अरुचिकर खान पान, कपड़े, घर, रास्ता, गली, नौकरी धन्धा या अनिष्ट सेठ-नौकर-ग्राहक-दलालपड़ौसी कुटुम्ब स्नेही आदि, नापसंद रूप, रस, स्पर्श आदि कितने ही आते हैं, आयेंगे तथा आ चुके अथवा अभी नहीं है, पहले नहीं आये या भविष्य में भी इष्ट नहीं है; पर उनके बारे में मनमें विचार उठने पर मन बिगड़ता है, दृढ चिंतन होता है कि 'वह कब मिटे ? कैसे जावे? पुन: न आवे तो अच्छा....' आदि । 'पहले खूब दु:खद विषय प्राप्त हुए, मिटे सो अच्छा हुआ अथवा नहीं आवे तो अच्छा।' दिन भर में वैसा कितना चलता रहता है ? वह भी इतने से ही पूरा नहीं होता। कदाचित यह बात मन में नहीं आई तो वेदना या इष्ट संयोग के बारे मे जो आगे कहेंगे, चिंतन आ जाता है। तो प्रति दिन में आर्त ध्यान कितना ? वह सब किस गति के कर्म बंध कराता है ? देव मनुष्य गति के या तिर्यंच गति के ? ध्यान, अध्यवसाय, वृति आदि के अनुसार कर्म बंध प्रति समय होता रहता है। शुभ में शुभ, अशुभ में अशुभ । आर्त ध्यान अशुभ होने से दिन भर में कितनी बार कितने अशुभ कर्मों का बंध होता है ? यह सोचने योग्य है। ..
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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