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________________ ( ११ ) 'चित्त' के ३ प्रकार हैं । १. भावना २. अनुप्रेक्षा तथा ३. चिता । भावना अर्थात् ध्यान के लिए अभ्यास की क्रिया, जिससे मन भावित हो । भस्म या रसायनादि को भावित करने के लिए भिन्न-भिन्न वनस्पति के रस से भावित दिया जाता है अथवा उसके पुट दिये जाते हैं; जिससे वह उससे अच्छी तरह सन जावे । कस्तूरी का डिब्बी में रात को रखा हुआ दतून सुबह कस्तूरी से भरा हुआ सा लगता है अर्थात् उसे उसकी भावना या पुट लगा, इसी तरह मन को भात्रित करने वाले ज्ञानादि के बराबर अभ्यास की प्रवृत्ति करने को याने मन को उसमें लगाये रखना भावना कहलायेगी ) । इससे दूसरे तीसरे विकल्पों से बचकर मन अब ध्धान अर्थात् एक तत्त्व पर एकाग्रता के लिए समर्थ बन जाता है । A अनुप्रेक्षा का अर्थ है पीछे की ओर दृष्टि करना । जिन तत्त्वों का अध्ययन किया हो, उसे याद करके जो चिंतन मनन किया जाता है वह है अनुप्रेक्षा । ध्यान एक अन्तर्मुहूर्त से ज्यादा नहीं टिकता । अतः इतना समय निकलने पर मन ध्यान से भ्रष्ट होगा । उस समय यदि मन को किसी तत्त्वस्मरण में जोड़ा जाय तो उसे अनुप्रेक्षा करना कहेंगे । इससे पुनः ध्यान में जुड़ने से पहले मन व्यर्थं विकल्पों से विचलित न हो । उदा० जगत के संयोगों की अनित्यता के तत्त्वों का विचार किया जाय तो वह उसकी अनुप्रेक्षा हुई । इस तरह जगत के जीवों की अशरण अवस्था, संसार की विचित्रता आदि किसी भी तत्त्व की अनुप्रेक्षा की जा सकती है। इस तरह सूत्र या अर्थ का चिंतन या स्मरण किया जाय तो वह अनुप्रेक्षा है । चिन्ता अर्थात् भावना या अनुप्रेक्षा सिवाय की मन की अस्थिर अवस्था | उदा० यह सोचना कि 'अब क्या कर्तव्य है ?' या 'मेरे रागादि कितने कम हुए ?' इत्यादि विचारधारा 'चिन्ता' है । र
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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