SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 287
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( २६२ ) इससे अन्त में कुल तृतीयांश हिस्से में से प्रात्मप्रदेश हट कर उतना शरीर का हिस्सा बिलकुल आत्मप्रदेश रहित हो जाता है। ऐसे आत्मप्रदेश के संकोच के साथ असंख्य समय में काययोग का सर्वथा निरोध हो जाता है। तब सभी आत्म प्रदेश जो आज तक योगों के कारण कम्पनशील थे. वे अब सर्वथा योगनिरोध हो जाने से बिलकुल निष्कंप (निष्प्रकम्प) होकर स्थिर हो जाते हैं। और तब आत्मा शैलेशी भाव को प्राप्त होता है। कहा है : 'तो कयजोग निरीहोसेलेसीभावणामेइ' अर्थात् योगनिरोध करने वाला तब शैलेशी भाव को प्राप्त होता है, यहां 'सेलेसा भावणा' में 'सेलेसी' शब्द प्राकृत भाषा का है, उसका अर्थ इस तरह बताया जाता है । (१) 'सेलेस' याने 'शैलेश'। शिला याने पाषाण । शिला का बना हुआ शिलामय 'शैल' याने पर्वत । उना ईश याने 'शंलेश' अर्थात मेरु । आत्मा में जो मेरु जैसी अचलता, निश्चलता आती है, आत्मप्रदेशों की स्थिरता निष्प्रकम्पता होती है, वही शैलेश । पहले जो अशैलेश होने से अब शैलेश जैसा होता है वह शैलेशी भवन कहलाता है। शैलेश जैसा करने को शैलेशीकरण कहते हैं । (उदा० कोई पदार्थ 'स्व' न हो उसे स्व जैसा किया जाय तो उसे 'स्वीकरण' किया कहते हैं ।) इस तरह जो आत्म प्रदेश पहले अशैलेशी थे वे अब शैलेशी शंलेश जैसे याने शैलेशी हए । आत्म प्रदेश शैलेशी याने आत्मा भी शैलेशी। (इस पर से आत्मा ने शैलेशी प्राप्त की कहा जाता है।) (२) 'सलेसी' याने सेल जैसे, ईसी याने शैल जैसे ऋषि, स्थिरता होने से पर्वत बने हए केवली महषि । (३) शेलेसी'याने से+अलेसी' दो शब्दों को सन्धि में 'अ' का लोपहोने से सेलेसी शब्द बना। इसमें पहले जो कहा, 'कय जोगनिरोहो सेलेसी भावरणामेइ'का अर्थहुआ योगनिरोध करने वाला, 'से'याने वह अलेशी भावना
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy