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________________ ( २४९ । ही ख्याल नहीं आता । जरा सा बारीक या पतला सा ख्याल भी नहीं । उदा० जब मध्य लोक पर मन केन्द्रित हुआ तो वहाँ अब यह लक्ष जरा भी नहीं कि यह लोक ऊपर नीचे के लकों के बीच में रहा हुआ है। क्योंकि इसमें तो पुनः ऊपर नीचे के लोक लक्ष में आ जाते हैं । ये नहीं आने चाहिये अत: उसके अल्पांश भी ख्याल रहित मात्र मध्य लोक पर ही मन केन्द्रित बनता हैं । आखिर एक परमाणु पर भी जब मन को स्थिर किया जाता है, तब यह ख्याल नहीं होता कि 'यह परमाणु आसपास के २-४-५....१००, संख्यात या अनन्त अणुओं के बीच में या किनारे पर रहा हुआ हैं ।' नहीं, ये सब तो मन का संकुचित करने पर कम हो गये सो हो गये । अब तो सिर्फ किसी एक निश्चित परमाणु पर मन लग गया, चिपक गया । उसमें उसके वर्ण, रस. गन्ध आदि पर्यायों में एक पर्याय से दूसरे पयायों पर मन जाता हो, उसे भी संकुचित कर के मात्र एक पर्याय पर मन को केन्द्रित करते हैं । यह तो मात्र एक काना हुई ! बाकी सचमुच में जो संकोचन प्रक्रिया होती है, वह तो उसके अनुभवी जानते हैं । ) प्रश्न इस तरह अणु पर मन को केन्द्रित करने का कार्य तो चौद पूर्वी हषि कर सकते हैं, तो क्या सभी चौदह पूर्वी महर्षियों को शुक्लध्यान होता है व उससे केवलज्ञान होता है ? I उत्तर - यह ध्यान अकेले चिंतन की हो वस्तु नहीं है । हां पहले कहा है वैसे इस में क्षमा आदि का आलंबन करना होता है । उसके आलम्बन से अर्थात् आधार रख कर शुक्लध्यान में चढा जाता हैं । अतः ज्यों ज्यों इन क्रोध लोभ आदि कष यों का त्याग अधिकाधिक प्रबल बनता जायगा, अधिकाधिक सूक्ष्म कषायों का भी त्याग होता जायगा, त्यों त्यों वह आलम्भन अधिकाधिक जोरदार किया। गिना जायगा; और वह मन को शुक्लध्यान में आगे और आगे बढाने
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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