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________________ ४१ १४ १६ + ध्यान शतक विषयानुक्रम विषय पृष्ठ | विषय ग्रन्थकार १ मोक्ष की इच्छा में नियाणा टीकाकार | क्यों नहि ? ध्यान क्या ? | आर्तध्यान संसारबीज रागआत्म स्वरूप शुद्ध-विकृत द्वेष-मोह ४४ ३चित्त भावना० अनुपेक्षा.चिंता.११ आर्तध्यान में लेश्याः शुभयोग योग व निरोध का महत्त्व० ४७ ८ पुद्गल वर्गणाएं आर्तध्यान के लक्षणः भाक्रन्द, योग-निरोध की आवश्यकता १५ दीन० गुस्सा व रोष० स्वकार्य ध्यानांतर : ध्यानधारा ध्यान के विषय की निन्दा० वैभव पर भाश्चर्य. ४ ध्याने इच्छा० मिलने पर खुशी० आर्त रौद्र० वैभव के उद्यम विषयों पर धमं० शुक्ल० गृद्धि० शुद्ध धर्म से परामुख० प्रमाद० जिन वचन में । ४ आतध्यान अनिष्ट संयोग० रोगादि वेदना० लापरवाही. इष्टवियोग० नियाणा आर्तध्यान का स्वामी तीनों काल का आत. रौद्रध्यान ४ (२) वेदनानुबन्धी १ हिंसानुबन्धी इष्ट संयोग-अवियोगानुबंधी २ मृषानुबन्धी ३ अमत्य वचन : भभूतोदानियाणाः सुखामास वन भूतनिन्हव० भर्थान्तर० ६४ आतध्यानका फल ३स्तेयानुबन्धी मुनिको आत नहीं ? ४ संरक्षणानुबन्धी मुनि कौन ? अनुमोदन से रौद्रध्यान दवा करने में उद्देश्य स्वामी कौन ? आलंबन प्रशस्त फल व लेश्या तपस्या से दुःखवियोग के रौद्र० के लक्षण उत्सन्न चिंतन में आत क्यों नहीं ? ३९ | बहुल नानाविध भामरण. ७८
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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