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________________ ( १३४ ) धर्म ध्यान के आज्ञा अपाय आदि चार प्रकारों का रहस्य: यह रहस्य समझने जैसा है । जीव को आर्त रौद्र ध्यान से बचाने वाला धर्म-ध्यान है । यह आर्त्त रोद्रध्यान होने का कारण-(१) विषय, राग, (२) हिंसादि पापों में दिलचस्पी तथा निडरता, (३) अहंत्व क्षुद्रता, तथा (४) अज्ञता मूढता है। यदि ये रुक जाय तो आत रौद्र ध्यान रु । धर्म ध्यान के ये चार प्रकार इन्हें रोकने वाले हैं। इससे धर्म ध्यान से अशुभ ध्यान का रुक जाना स्वाभाविक है। ये कैसे रोकते हैं यह देखिए (१) धर्म ध्यान में पहला प्रकार आज्ञाविचय याने जिनाज्ञा का चिंतन है। यह लाने के लिए जिनाज्ञा की एक एक विशेषता को ले कर जिनाज्ञा पर अत्यन्त बहमान खड़ा होना चाहिये । मन को ऐसा होता है कि अहो ! यह जिनाज्ञा इतनी अधिक अतिनिपुण ! अनादि अनन्त !' ऐसे दिल के उछलते हुए बहमान के साथ चिंतन होगा तब मन कहीं एकाग्र तन्मय होकर उसमें चिपक जायगा और यही धर्म ध्यान बनेगा। तब यदि जिनाज्ञा पर बहुमान हो तो जिनाज्ञा में तो विषयत्याग और सम्यक ज्ञानाचार आदि आराधना की आज्ञा है, अतः आज्ञा. बहुमान से स्वतः ही विषय राग रुकेगा और इससे उसके निमित्त होने वाला दुर्ध्यान रुक जायग । (२) तो विषयराग के साथ पाप का आनन्द (दिलचस्पी) और पाप की निर्भयता रोकने के लिए 'अपायविचय' है । अपायविचय मे हिंसादि दुष्कृत्यों तथा रागादि दोषों के अपाय याने अनर्थ का चितन है; इस चिंतन में तन्मयता लाने के लिए इन दोषों और दुष्कृत्यों के प्रति पूरा पूरा तिरस्कार और उसके अनर्थों का भय जागना चाहिये । इन पापों के प्रति अत्यन्त तिरस्कार तथा भय खड़ा होने से (i) उसके अपाय के चिंतन में कहीं तन्मयता आवे तो
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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