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________________ ( ९९ .) सभी संस्कार क्षणिक याने क्षण स्थायी है । वस्तु ( स्थित या ) अस्थित हो तो उसमें उत्पत्ति कैसी ? जो अस्तित्व है वही उत्पत्ति हैं, और वही कारण है । अतः (१) जीव काल से स्वतः नहीं है ( २ ) ....परतः नहीं है । वैसे ही (३) ईश्वर से जीव स्वतः नहीं है (४) . परतः नही है । आदि ८४ भेद होते हैं । ... .... ज्ञानिक के ६७ भेद हैं । वे जीवादि ९ तत्त्वों में से प्रत्येक के साथ सप्तभगी के 'स्याद् अस्ति नास्ति, • अस्ति नास्ति, • ४ अवक्तव्य, ० " अस्ति अवक्तव्य, ०' नास्ति अवक्तव्य, ०७ अस्तिनास्ति अवक्तव्य में से १-१ जोड़ने से ९७ = ६३ भेद हुए | तदुपरांत उत्पत्ति के साथ 'स्याद् अस्ति', 'स्वाद नास्ति' आदि ४ भग के १-१ भंग जोड़ने से ६३ + ४ - ६७ भेद होते हैं। वह कहता है (१) कौन जाने जीव है ? (२) कौन जानता है कि जीव नहीं है ? (३) .. जीव है या नहीं है (४) कौन जानता है कि जीव अवक्तव्य है ?.... इस तरह से ७ भंग। इसी तरह अजीवादि तत्त्व के साथ | इसी तरह किसे पता वस्तु की उत्पत्ति है ? नहीं है ? है और नहीं है ? या अवक्तव्य है ? तात्पर्य यह कि 'यह कोई भी नहीं जानता ।' ऐसा अज्ञानिक मानता है । 'अज्ञानिक' याने (i) मिथ्याज्ञान वाला अथवा (ii) अज्ञान से चलने वाला (iii) अज्ञान के प्रयोजन वाला याने कुछ भी विचार न करके योंही मान लेने वाला कि 'यदि उपरोक्त कुछ भी सत् या असत् आदि देखने जायँ तो कृतनाश आदि आपत्ति आती है, इसलिए अज्ञान ही श्रेयस्कर है ।' वैनयिक मानता है कि वेग आचार शास्त्र को देखे बिना सभी का विनय करना । उसके ३२ भेद हैं। सुर, नृपति, यति, ज्ञाति, स्थविर, अधम, माता, पिता इन आठ का मन, वचन, काया तथा
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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