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________________ पांच दोष १. शंका २. कांक्षा ३. विचिकित्सा ४. प्रशंसा ५ संस्तव पांच गुण १. प्रश्रम १. प्रशम २ स्थैर्य २. संवेग ३. प्रभावना ३. निर्वेद ४. आयतन सेवा ४. अनुकम्पा ५. भक्ति ५. आस्तिक्य सम्यक्त्व में त्याज्य पांच दोष शंका:- याने जिन वचन पर शंका, देश से या सर्व से आंशिक या सर्वथा । उदा० 'आत्म असंख्य प्रदेशी होगा या निष्प्रदेश ?' यह देशशंका 'धर्मास्तिकादि द्रव्य कथनानुसार होगे या नहीं ?' यह सर्व शंका। शंका नहीं करना चाहिये, क्योंकि इसमें मिथ्यात्व लगता है। शास्त्र में मिथ्यात्व के प्रकार कहे हैं; जैसे कि आभिग्रहिक, अनभिग्रहिक, सांशयिक""आदि; वहां संशय शंका को भी मिथ्यात्व में गिना। कहा है कि: 'एकस्मिन्नप्यर्थे सन्दिग्धे, प्रत्ययाऽर्हति हि नष्टः । मिथ्यात्वदर्शनं तत्. स चादिदेतुर्भवगतिनाम् ॥ सूत्रस्यै कस्यारोचनादक्षरस्य भवति नरः । .." मिथ्या दृष्टिः सत्रं हि नः प्रमाणं जिनाभिहितम् । अर्थः- 'सर्वज्ञ के कहे हुए एक भी पदार्थ पर शंका हो तो सर्वज्ञ अरिहंत प्रभु परका विश्वास नष्ट हो गया गिना जावेगा। यह मिथ्यात्व दर्शन है और वह संसार की गतियों का प्रथम कारण है।
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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