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________________ . ( ७७ ) काबोय-नील-काला लेस्सानो तिव्यसंकिलिट्ठारो। रोद्दझाणोवगयस्स कम्मपरिणामणियारो ॥२५॥ अर्थः-रौद्रध्यान में चढ़े हुए को तीव्र संक्लेशवाली कापोत, नोल व कृष्ण लेश्याएं होती हैं और वे कर्म परिणाम से उत्पन्न होने वाली हैं। प्रश्न- यों तो अविरत सम्यक्त्व में तथा देशविरति में भी कभी कभी रौद्रध्यान आ जाने का कहा, तो उन्हें नरकगति का बन्ध क्यों नहीं ? ___ उत्तर - इसका कारण है, साथ में रहे हुए सम्यक्त्व का प्रतिबंधक होना। वह नरकगति का रोकने वाला है। परन्तु ऐसा रौद्रध्यान उठे तब हम अपने आप में सम्यक्त्व के टिकने का विश्वास कैसे रख सकते हैं ? अतः संसार वृद्धि तथा नरकगति से बचने के लिए सदा रौद्रध्यान से बचना चाहिये। रौद्रध्यान में लेश्या अब रौद्रध्यान वाले को कौन सी लेश्या होती है, वह कहते हैं:विवेचन : रौद्रध्यान के समय जीव को कापोत लेश्या, नील लेश्या और कृष्ण लेश्या होती है। यों तो आर्त्तध्यान के वक्त भी ये लेश्याएं होती हैं, परन्तु इसमें वे उससे ज्यादा तीव्र संक्लेश वाली होती हैं । लेश्या कर्मजन्य पुद्गल परिणाम है, वैसे वर्ण के पुद्गल हैं और उनके सम्बन्ध से जीव को वैसा भाव जागता है। रौद्रध्यान में रागादि तीव्र संक्लेश के कारण लेश्या के भाव भी अति संक्लेश वाले होते हैं। श्रेणिक कृष्ण में क्षायिक सम्यक्त्व था, तब भी अन्त
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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