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________________ ( .७५ ) एयं चउन्विहं राग-दोस मोहाउलस्स जीवस्स । रोद्दज्झाणं संसारवद्धणं नरयगइमूले ॥२४॥ अर्थ:-यह चार प्रकार का रौद्रध्यान राग द्वेष और मोह से च्याकुल जीव को होता है। यह संसार की वृद्धि करवाने वाला और नरकगति की जड़ है। रखा, वह ध्यान की विचारधारा में मन प्रधान अंग है यह सूचित करने के लिए ही रखा है। यों चाहे देशविरति तक के जीवों को चाहे रौद्रध्यान आता हो . परन्तु इससे उनका यह ध्यान प्रशंसनीय नहीं हो जाता। वह तो निन्द्य है, अकल्याण करने वाला है। वह जरा ज्यादा टिका या ज्यादा उग्र बना तो सम्भव है कि हृदय में अनन्तानुबन्धी कषाय उठे और जीव को नीचे मिथ्यात्व तक घसीट जाय । रौद्रध्यान का फल और लेश्या अब यह आर्त्तध्यान किस बल पर होता है और उससे भी ज्यादा क्या है तथा कौन सी गति होती है यह बताते हैं:विवेचन : 'जो जीव रांग से या द्वष से या मोह मूढता या मिथ्याज्ञान से विशेष आकुल व्याकुल हो, उसे इन चारों में से किसी भी प्रकार का रौद्रध्यान हो जाता है। जगे ही ऐसा नियम नहीं, परन्तु बहुत राग द्वेष मोह की पीड़ा खड़ी हुई तो रौद्रध्यान को जगाने की सुविधा हो जाती है। मम्मण को धन के अति राग की पीड़ा थी। अग्निशर्मा को बाद को भवों में समरादित्य के जीव के प्रति बहुत ६ष की पीड़ा थी और सुभूम चक्रवर्ती बहुत मूढ बना, तो इन सब
SR No.022131
Book TitleDhyan Shatak
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherDivyadarshan Karyalay
Publication Year1974
Total Pages330
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size18 MB
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