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________________ - ( निवेदन ) - आ ग्रंथना मूळ योजक पंडितराज महाराजश्री, ७ उत्तमचंद्रजी स्वामी के जेओ बहुसूत्री; शास्त्र विशारद अने उत्तम उपदेशक हता. ते ओश्रीए अभ्यासीओनी सुगमता अर्थे उपकार करी जैन शास्त्रमाथी पचीश थोकडाओनी रचना करी हती. ते पुस्तको खलास थवाथी शाह त्रीभोवन रुगनाथे फरी महाराजश्री कृष्णजी स्वामी पासे सुधरावी तेमां बीजा थोकडाओ वधारी बत्रीश थोकडा छपाव्या. तेनी कीं० २-४-० राखेल आ ग्रंथ जैन शास्त्रना अभ्यासीओने प्रथम भगवानुं होइ तेनी कींमत ओछी होय तो माणसो वधु लाभ लइ शके ए हेतुथी मुनिश्री चुनिलालजी स्वामीनी दीक्षानी यादगीरी निमित्ते आ पुस्तक तथा जैन सिद्धांत पाठमाळा ( के जेमां दश वैकालिक तथा उत्तराध्ययन ए बन्ने सूत्रो शुद्ध अने तथा भक्तामर आदि छ स्तोत्रो अने पुछींसुणं दाखल करेल छे. ) तथा बीजा छ पुस्तका मळीने आठ पुस्तको महावीर ज्यंति सुधी अने पाळधी जेठ शुद्ध १५ सुधी ग्राहक थनारने अरधी किंमते आपवानो निश्चय कर्यो, अने तेमांनो आ ग्रंथ अमे छपावेल छे. अमारा छपाता बधा ग्रंथो महाराज श्री ज्ञानचंद्रजी स्वामी बखतो वखत मुफो तपासी शुद्ध करी आपे छे ते प्रमाणे आ वखते पण ओश्रीने आ सटमांना छपाता पुस्तको शुद्ध करवाना ने तपासवाना होइ तेओश्री बहार स्थळे विचरता होवाथी तथा प्रेस तरफनी heath मुश्केलीओ होवाथी ग्राहकोने आपेली मुदत करतां आ सटना पुस्तको अमो मोडा आपी शक्यां छीए ते माटे क्षमा याचीए छीए.
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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