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________________ जैन सिद्धांत प्रकरण संग्रह. २०१ छे. पुद्गल द्रव्यमा ४ गुण अनादि अनंत प्रथम भांगे छे. जीव पुद्गलनो संबंध अभव्य जीवने अनादि अनंत प्रथम भांगे छे. अने पुद्गल खंधथी ते सादिसांत त्रिजे भांगे छे. जघन्य १ समय उत्कृष्टो असंख्य काळ ते माटे सादिसांत भांगो अने सादि अनंत भांगो पुद्गलमां नथी.अने भव्य जीवने पुदलनो संबंध अनादि सांत चोथे भांगे छे. जीव द्रव्यमां गुण ४ अनादि अनंत प्रथम भांगे छे. जीवने कर्मनो संयोग भव्य जीवने अनादि सांत कारण के कोइक वखते ते कर्मथी छुटशे. नरक तिर्यचना भव करवा ते सादि सांत त्रिजे भांगे जाणवा. अने जीवमां सिद्धपणु प्रकटे ते सादि अनंत चोथे भांगे जाणवू एम षद्रव्यनो विचार लेश मात्र छे. हवे आत्म द्रव्यनो विचार,आत्मा ३. एक बहिरात्मा, बीजो अंतरात्मा, त्रिजो परमात्मा, तेमां बहिरात्मा ते धन, स्वजन, शरीर, कर्म, सर्व पर पुद्गलिक वस्तु माहरि अने हुँ पण एहनो एहवी परिणामनी लोलुपता, अज्ञान, मोह, मिथ्यात्वे परिणम्यो तेने बहिरात्मा कहिए. (दुहो) पुद्गलसु रातो रहे,जाणे एह निधान;तस लाभे लोभ्यो रहे,(सो)बाहिरात्म अभिधान पुद्गल विषय विलास द्रव्य कुटुंबादिमां रातो ने रातो तलालीन परिणामे मग्न रहे. अने मनोज्ञ पुद्गल मळे थके जाणे जे एह उपरांत विजुं कांइ निधान नयी, ते पुद्गलना लाभ मांज लोभि रहे तेनुं नाम बहिरात्मा. ते पहेला गुणठाणाथी त्रिजा गुणठाणा सुधि जाणवो. . ___.. हवे बीजा अंतरात्मानुं लक्षण कहे छे. (दुहो) पुद्गल खल संगी परे,सेवे अवसर देख तनुं अशक्तज्यु लाकडी, ज्ञान भेद पद लेख १ पुद्गलनों संबंध खल निच दुर्जन-मनुष्यान संगति सरिखो जाणे. पण अण चाल्ये पुद्गलनो संग करे. जेम शरिरे असमर्थ लाकडि राखे, ते लाजतो थको पण समर्थाइ राखे नहि. तेम परिणामथी
SR No.022129
Book TitleJain Siddhant Prakaran Sangraha
Original Sutra AuthorN/A
Author
PublisherAjramar Jain Vidyashala
Publication Year1928
Total Pages242
LanguageSanskrit, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari & Book_Gujarati
File Size17 MB
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